डॉ0 हामिद मेहरानी-माइलानी- सहजयोग कृषि क्षेत्र के लिये भी एक वरदान है

डॉ0 हामिद मेहरानी-माइलानी- सहजयोग कृषि क्षेत्र के लिये भी एक वरदान है

कृषीथॉन 2016 नासिक के आयोजकों की ओर से पत्र
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Certificate for Sahaja Krishi from Government of Odisha

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*सहजयोग कृषि क्षेत्र के लिये भी एक वरदान है।*
"..................कृषि के क्षेत्र में भी हमने बहुत से शोध किये हैं। यहाँ पर एक व्यक्ति है जो कृषि विशेषज्ञ है । आत्म साक्षात्कार पाने के बाद उन्होंने चैतन्य लहरियों पर बहुत सा शोध किया है । जल को चैतन्यित करके यदि आप पौधों को सींचे तो थोड़े से समय में ही आपको दस गुनी फसल प्राप्त हो सकती है । *यह कार्य भारत में हुआ है, भारत के एक कृषि विश्वविद्यालय में(राहुरी में) । इन लोगों ने पाया कि एक सर्वसाधारण पौधे और चैतन्यित जल से सींचे जाने वाले पौधे के विकास में बड़ा भारी अंतर होता है । कृषि के क्षेत्र में एक अन्य परिणाम जो हमने देखा है वो ये है कि यदि आप चैतन्य दें तो सर्वसाधारण गाय भी बहुत सा दूध देंगी । आपके पास यदि हाइब्रिड नस्ल की गायें हैं तो उनका दूध मस्तिष्क के लिये अच्छा नहीं होता क्योंकि दोगले पशुओं का दूध पीने वाले भी दोगले ही हो जाते हैं । मेरा अभिप्राय है कि उनका मस्तिष्क अस्थिर हो जाता है ।*
...................अतः बेहतर ये होगा कि ऐसी गाय का दूध पिया जाय जिन पर इस प्रकार के प्रयोग न किये गये हों । खाद्य पदार्थों के बारे में भी ऐसा ही है । दोगले नस्ल के खाद्य पदार्थ हमारे लिये हितकर नहीं होते हैं क्योंकि मेरे विचार से ये हमारे स्नायु तंत्र को हानि पंहुचाते हैं । परंतु सर्वसाधारण बीजों का उपयोग भी आप नहीं कर सकते हैं क्योंकि वे दुर्बल हो चुके हैं और उनसे अच्छी फसल नहीं मिल सकती । इन देसी बीजों को यदि हम चैतन्यित कर लें तो इनसे बहुत अच्छी फसल होती है । कभी-कभी तो इन बीजों से हाइब्रिड बीजों के बराबर ही फसल होती है, जिसका स्वाद भी अच्छा होता है और इससे मनुष्य को किसी प्रकार की समस्यायें भी नहीं होती हैं। भारत के कृषि क्षेत्र में भी इससे बहुत सहायता मिल सकती है । सरकार ने हमें बहुत सारी जमीन पट्टे पर दी है, जहॉं हम कृषि के क्षेत्र में प्रयोग करेंगे और निष्कर्ष निकालेंगे कि चैतन्य लहरों का किस प्रकार से उपयोग किया जाय । कुछ सहजयोगी किसानों ने बहुत बड़ा कार्य किया है । उन्होंने खोज निकाला है कि चैतन्य लहरियों का पशुओं तथा खेती पर कितना अच्छा प्रभाव पड़ता है ।"
*परमपूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी*
( संदर्भ:निर्मल सुरभि पृ. सं. 236)






डॉ0 हामिद मेहरानी-माइलानी द्वारा लिखा गया भाषण राहुरी, महाराष्ट्र।
वाइब्रेटेड जल पर किये गये प्रयोग के विषय में---
(पोस्ट काफी बड़ी है कृपया धैर्यपूर्वक पढ़ें अवश्य)
मैं डॉ0 हामिद मेहरानी-माइलानी .... मेरा जन्म ईरान में 22 मई 1947 में हुआ था। मेरी प्रारंभिक शिक्षा के बाद मैं तेहरान यूनिवर्सिटी गया। वहाँ मैंने अपनी मास्टर्स डिग्री प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिये मुझे वियेना -- ऑस्ट्रिया में स्कॉलरशिप मिली। मैंने वर्ष 1979 में मैंने यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर वियेना -- ऑस्ट्रिया से प्लांट प्रिजर्वेशन और सॉइल बायोलॉजी में डॉक्टरेट हासिल की।
मैंने अपनी नौकरी प्लांट ब्रीडिंग की एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में दो रिसर्च और प्लांट प्रोडक्शन केंद्रों के मैनेजर के रूप में प्रारंभ की। 1984 मैं ऑस्ट्रिया सरकार के फॉरेस्ट्री विभाग में कार्य कर रहा था। मैं शौकिया तौर पर प्लांट गारडन्स को डिजाइन करता हूँ और उनका प्लान भी तैयार करता हूँ। सभी क्षेत्रों में ज्ञान प्राप्त करने के बाद और कृषि क्षेत्र में अनेकों सर्टिफिकेट प्राप्त करने के बाद भी मुझे लगता था कि अभी मेरे जीवन में काफी खालीपन है। मुझे लगता था कि अभी मुझे कुछ और कार्य करना है। निसंदेह शिक्षा से मुझे कृषि के विकास का पूरा ज्ञान प्राप्त हुआ कि अभी तक हमें क्या प्राप्त हुआ तथा हमें अभी और कितनी दूर जाना है। इसके बाद मैंने विदेशी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करना प्रारंभ कर दिया ताकि मैं कृषि संबंधी पश्चिमी रिसर्चों को आगे भी पढ़ सकूं।
विभिन्न प्रकार की भाषाओं को सीखते समय मैंने देखा कि प्रत्येक भाषा ने मुझे कृषि संबंधी उपबब्धियों की अलग ही समझ प्रदान की। मुझे ऐसा लगा कि जितना ही मैं किसी चीज को सीखने का प्रयास करता ...उतना ही मैं कन्फ्यूज होता गया और मुझे अपने सामने आने वाली सभी समस्याओं में समानता भी नजर आने लगी। अंत में मैं एक निष्कर्ष पर पंहुचा कि कृषि एक जीवंत ऊर्जा है और ये जीवित ऊर्जा से ही संबंधित है... हम इसके बारे में उतना ही जानते हैं जितना हम इसे देखते हैं। उदा0 के लिये हम एक बीज को अंकुरित होता हुआ देखते हैं लेकिन हम अपने वैज्ञानिक शोधों से ये नहीं बता नहीं सकते कि ये कार्य होता कैसे है। हमारी शिक्षा जीवंत ऊर्जा के असीमित ज्ञान के लिये अभी अपर्याप्त है। इसी प्रकार से हमें नम्रता से ये भी स्वीकार करना पड़ेगा कि मानव रूप में अभी हमारा ज्ञान काफी अपर्याप्त और कम है। एक वैज्ञानिक के रूप में मैंने अनुभव किया कि मुझे अपना दिमाग खुला रखना है और मुझे अपने अस्तित्व के गहन क्षेत्रों के बारे में भी जानकारी हासिल करना चाहिये।
मैं आपका ध्यान विज्ञान जगत की जटिलताओं में से एक की ओर आकर्षित करना चाहूंगा। मैं आपको बैक्टीरिया के वनस्पति या जंतु जगत का एक उदा0 देना चाहूंगा तथा मनुष्य जगत का भी एक उदा0 देना चाहूंगा .... मनुष्य शरीर में जो कुछ भी फॉरेन होता है उसे शरीर द्वारा बाहर निकाल फेंका जाता है लेकिन जब एक ओवा एम्ब्रियो बन जाता है तो यह माँ के गर्भाशय में पूरी तरह से विकसित होने तक पोषित होता रहता है और ठीक समय आने पर ही शरीर से बाहर आता है। जरा सोचिये कि इस कार्य को इतनी दक्षतापूर्वक कौन करता है और कौन ये सोचता है कि ये एक एम्ब्रियो है। कई लोग इस घटना की व्याख्या नहीं कर पायेंगे।
सबसे पहले हमें बैक्टीरिया को वर्गीकृत करना होगा। जैसा कि आप जानते हैं कि बैक्टीरिया का शरीर कुछ ही कोशिकाओं से बना होता है, जिनके चारों ओर एक झिल्ली जैसी संरचना होती है। यदि आपके पास बैक्चीरिया को हजार गुना बड़ा करके देखने की सुविधा हो तो आप देखेंगे कि इसके शरीर की कोशिकायें एक दूसरे से कोमलता से जुड़ी होती हैं और इसका शरीर किसी ज्यॉमिट्रीकल संरचना की तरह दिखाई पड़ता है। ये बहुत ही सुंदर और आश्चर्यचकित कर देने वाला है। जब हम इस झिल्ली को काटते हैं तो हमें कुछ लाइपोप्रोटीन और फॉस्फोरिक एसिड के डैरिवेटिव्स (derivatives) सरलता से एक दूसरे से जुड़े हुये दिखाई पड़ते हैं। उनके द्वारा किये जाने वाला कार्य भी काफी दिलचस्प है। ये सेल मैम्बरेन से सेल सेंटर तक एकदम सही प्रकार का भोजन ले जाते हैं। हम इसकी व्याख्या नहीं कर पाते हैं कि इन सूक्ष्म तत्वों को कैसे ये सब मालूम है। अब प्रश्न ये उठता है कि उनको अपने शरीर में नाइट्रोजन किस प्रकार से प्राप्त होता है जबकि वे केवल हाइड्रोजन ही ले पाने में सक्षम होते हैं .... और किस प्रकार से उनका भोजन बाहर से अंदर तक जा पंहुचता है।
यदि हम अपनी जानकारियों को बड़े पौधों तक विस्तृत करके ले जांय तो यहाँ भी हमें सेल मैंम्बरेन में वही सरलता दिखाई देती है लेकिन यहाँ पर प्रश्न ये उठता है कि पौधों के अंदर मिट्टी से किस प्रकार से ये तत्व जड़ में प्रवेश करते हैं। जैसा कि पहले भी बताया गया है कि इसी प्रकार से मानव शरीर में भी है। हम मॉर्फोलॉजी, फिजियोलॉजी या बायोलॉजी के बारे में काफी कुछ जानते हैं लेकिन यदि हम इसका विश्लेषण करें तो हम देखेंगे कि जीवंत प्रणालियों को समझने के लिये हमारा ज्ञान बिल्कुल अपर्याप्त है। हमारे प्रश्न काफी सरल हो सकते हैं परंतु इनका उत्तर ढूंढने में काफी कठिनाई हो सकती है। इसी प्रकार से मेरी सत्य की खोज अन्य क्षेत्रों में भी होने लगी। मैंने सोचा कि कुरान में रूह के बारे में बताया गया है और बाइबिल में परमात्मा की सर्वव्याप्त शक्ति के बारे में बताया गया है। इसके बाद जब मैंने भारतीय संतो के बारे में पढ़ा तो पाया कि उन्होंने भी चैतन्य के बारे में बताया है। आपके महान देश में चैतन्य के क्षेत्र में काफी शोध कार्य हुआ है। मैंने अनुभव किया कि यदि पश्चिम वृक्ष के बारे में जानता है तो भारतीय, जीवन वृक्ष की जड़ों के बारे में जानते हैं।
आज से लगभग 14,000 वर्ष पहले एक संत श्री मार्कंडेय ने कुंडलिनी के बारे में लिखा। इसके बाद श्री ज्ञानेश्वर जी ने 14वीं शताब्दी में इसके बारे में लिखा और फिर कई अन्य संतो ने इस विषय पर लिखा। वे सभी गलत तो नहीं हो सकते हैं और न ही वे कोई झूठी बात कह सकते हैं। क्योंकि सार्वभौमिक रूप से बिना एक दूसरे से किसी कनेक्शन के सभी ने एक ही बात कही और कुरान में और भृगुमुनि ने नाड़ी ग्रंथ में कई हजारों वर्ष पहले हमारे पुनरूद्धार या पुनर्जन्म की बात की। खासकर भृगुमुनि जो ज्योतिष शास्त्र के संस्थापक थे... उन्होंने कलियुग को पूरी तरह से एक वास्तविकता बताया और कहा कि परमचैतन्य आकार ग्रहण करेगा और कुंडलिनी जो हमारे अंदर एक अवशिष्ट ऊर्जा है वह जागृत हो उठेगी और लोगों को एक चेतना के एक नये आयाम में ले जायेगी। मैंने अपना दिमाग खुला रखा और 29 सितंबर 1982 को ऑस्ट्रिया में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में, एक हजार से अधिक लोगों की उपस्थिति में कुंडलिनी जागरण प्राप्त करके आत्मसाक्षात्कार लिया। मेरा ये अनुभव शब्दों से परे था। इससे मुझे पहले तो मन की शांति का अनुभव हुआ और बाद में अपनी उंगलियों में प्रवेश करती हुई शीतल लहरियों का अनुभव हुआ। मुझे मेरे पूरे शरीर में बेहद आराम का अनुभव हुआ और मुझे अत्यधिक आनंद की अनुभूति हुई। हम पूछ सकते हैं कि वाइब्रेशन्स क्या हैं। मैं आपको अपनी अनुभूति से वाइब्रेशन्स के और कुंडलिनी के तथा सहजयोग के बारे में बता सकता हूं। आप सभी भारतीय लोग इस महान धरती पर जन्मे हैं ... और यदि आप लोग मुझको इस विषय पर बतायेंगे तो ये कोई अजीब बात नहीं होगी लेकिन जब मैं आप लोगों को कुंडलिनी के बारे में बताऊंगा तो मैं आपको काफी अजीब लग सकता है।
हम जब अपने ऑटोनॉमस नर्वस सिस्टम के बारे बात करते हैं तो हमें इसके नाम के ही बारे में मालूम है पर हम इसकी व्याख्या नहीं कर पाते हैं। हम यही बता पाते हैं कि ये सिस्टम स्वयमेव ही कार्य करता है ... लेकिन ये इतना दक्ष और व्यवस्थित है कि हमें पूछना चाहिये कि ये ऑटो कौन है। हम एक कार को भी ऑटोमोबाइल कहते हैं लेकिन कार को चलाने के लिये तो हमें ड्राइवर की आवश्यकता होती है। तो फिर इस शरीर को चलाने के लिये भी तो हमें किसी ड्राइवर की आवश्यकता होनी चाहिये .... और यह ड्राइवर हमारी आत्मा है। इस पर कोई विश्वास करे या न करे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन वैज्ञानिक के रूप में हमें अपनी खोज जारी रखनी होगी और ये स्वीकार करना पड़ेगा कि आत्मा या परमात्मा का अस्तित्व भी है। एक वैज्ञानिक जैसी ईमानदारी से मुझे स्वीकार करना पड़ेगा कि हाँ मैंने अपने चित्त में आत्मा के अस्तित्व का अनुभव किया है जिसने मुझे सामूहिक चेतना के रूप में एक नई चेतना प्रदान की है जो मुझे अपने बारे में तथा अन्य लोगों के बारे में भी जानकारी प्रदान करती है। वाइब्रशन्स या चैतन्य लहरियां मुझे वास्तविकता की जानकारी देती हैं। उदा0 के लिये यदि मुझे किसी व्यक्ति के बारे में जानकारी लेनी है तो मैं अपने हाथ उसकी ओर करूंगा और मेरी अंगुलियों (जो सूक्ष्म केंद्रों या चक्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं) के पोरों पर ठंडे गर्म या बहुत ठंडे वाइब्रेशन्स के रूप में एक प्रकार की संवेदना का अनुभव होगा। इन सबको सहजयोग में डिकोड किया जा सकता है या इनका अर्थ निकाला जा सकता है।
प्रारंभ में जैसा कि मैंने आपको बताया कि मानवीय चेतना काफी सीमित है और हमारी चेतना में हमारे मस्तिष्क का एक छोटा सा ही भाग कार्य करता है। उदा0 के लिये हमारे पास 25 K-bytes वाला एक कंप्यूटर है और इसमें हम 30 K-bytes का कोई प्रोग्राम लिखते हैं तो इस कंप्यूटर में ये कार्य संभव नहीं होगा। हमें पहले इस कंप्यूटर की क्षमता एक नये रन कार्ट के माध्यम से बढ़ानी होगी। ठीक इसी प्रकार से हमारे मस्तिष्क में भी होता है। इसकी क्षमता को भी समस्या के अनुरूप बढ़ाया जाना चाहिये। सहजयोग में समस्या को कुंडलिनी की रेजिडुअल क्षमता को बढ़ाकर, बिना किसी खतरे के इस कार्य किया जा सकता है।
वर्ष 1982 में आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करने के बाद मैं श्रीमाताजी को मिला और मैं अनेकों विषयों पर उनके ज्ञान को देखकर दंग रह गया। उन्होंने किसी चीज को जटिलता से नहीं बताया। उन्होंने मुझको बताया कि परम चैतन्य ने ही सभी चीजों को सृजन किया है .. और यही सभी चीजों का पोषण करता है ...निर्माण करता है और उनको दक्षता से नियंत्रित करता है। ये व्यवस्था करता है ... सोचता है और सबसे बड़ी बात यह कि यह प्रेम भी करता है। उन्होंने मुझे बताया कि वाइब्रेशन्स को किस प्रकार से उपयोग करना है। मैंने परम चैतन्य को एक प्रयोग के माध्यम से परखने का निर्णय लिया जो परमात्मा की सर्वव्याप्त शक्ति है। उस समय मैं एक अंतर्राष्ट्रीय प्लांट ब्रीडिंग कंपनी में कार्य कर रहा था और मेरे पास कई प्रकार के प्रयोग करने की पूरी सुविधा थी ... यानी वाइब्रेटेड जल पर भी प्रयोग करने की भी पूरी सुविधा थी। मैंने टमाटर के पौधों पर एक छोटा सा प्रयोग करने की सोची। ये देखना आश्चर्यजनक था कि वाइब्रेटेड जल से सींचे हुये टमाटर आकार में काफी बड़े थे ... उनका रंग भी आकर्षक था तथा उनका स्वाद भी शानदार था अपेक्षाकृत उन टमाटरों के जो सामान्य जल से सींचे गये थे। इस प्रयोग के परिणामों से मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी। ये बहुत बड़ी बात है कि श्रीमाताजी ने अपने प्रेम के कारण कई लोगों को निशुल्क वाइब्रेटेड टमाटर के बीज वितरित किये।
अगली बार मैंने अपने प्रयोग को एयरोपोनिक सिस्टम से विस्तार दिया। इस सिस्टम में मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता बल्कि केवल पानी में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों का मिश्रण मिलाया जाता है। इस प्रयोग के परिणामों ने भी अच्छे परिणाम दिये और वाइब्रेटेड जल के मेरे प्रयोगों के लिये मुझे काफी प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। श्रीमाताजी की अनुमति से मैंने मक्के व सूरजमुखी पर एक फील्ड एक्सपेरीमेंट किया। मैंने एक खेत में मक्के और सूरजमुखी के बीज बोये और उनमें वाइब्रेटेड जल छिड़का। इसी प्रकार से एक खेत में मैंने मक्के और सूरजमुखी के बीज बोये और उन्हें वाइब्रेटेड जल से नहीं सींचा। मैंने 27 मई को बीज बोये थे जो उस क्षेत्र में किसानों द्वारा बीज बोये जाने का काफी देर का समय था। मेरे पास रोज खेतों को सींचने का समय भी अधिक नहीं था अतः मैंने एक ऑटोमैटिक सिंचाई व्यवस्था की। मैंने कंप्यूटर से सिंचाई की व्यवस्था की ताकि खेतों को ठीक समय पर पानी मिल सके। इस प्रयोग के परिणाम स्वरूप वाइब्रेटेड जल से सींचे हुये खेत में अधिक हरे पौधे हुये और वे एक फीट ऊंचे थे। पौधों का औसत वजन भी अन्य पौधों से 25% अधिक था। सूरजमुखी के फूलों का डाइमीटर भी बिना वाइब्रेटेड जल से सींचे गये फूलों से दो इंच अधिक था। यहाँ पर ये बता देना ठीक होगा कि श्रीमाताजी ने पुणे में अपने फार्महाउस में सूरजमुखी के फूल उगाये थे जिनका डायमीटर 12 इंच से अधिक था ... जो काफी वजनदार भी थे और उनमें से प्रत्येक से 250 मिली0 तेल भी निकला था। इसकी जानकारी वहाँ के अखबारों में भी प्रकाशित की गई थी।
इस प्रयोग के बाद मेरी कंपनी को एसिड वर्षा से मरते हुये पौधों को पुनर्जीवित करने का ऑर्डर भी प्राप्त हुआ। इन पौधों में कई प्रकार के जंगली पेड़ थे और मेरे पास काफी अच्छा अवसर था कि मैं वाइब्रेटेड जल से उन पर प्रयोग कर सकता। इस बार भी मुझे काफी उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त हुये। इससे मुझे यूरोप के मृत होते जंगलों पर प्रयोग करने की प्रेरणा प्राप्त हुई।
वर्ष 1986 में हमें अपने प्रयोग करने के लिये जंगल का एक भाग दिया गया। ये प्रयोग भी काफी अच्छा चल रहा है। मैंने पेड़ों के अंदर बहते हुये रस या सैप को शिगोमीटर से मापा। इससे मुझे पता चला कि वाइब्रेटेड जल वाले क्षेत्र में सैप का प्रवाह काफी सरलता से हो रहा था। इसका अर्थ था कि जंगली वृक्षों में पोषक तत्वों को खींचने की क्षमता काफी अधिक होती है और इससे इनके विकास में सुधार देखा गया। मैंने अपनी किताब .. हमारे जंगलों को क्या हो गया है, में इस प्रयोग के परिणामों के बारे में लिखा है। इस किताब को फरवरी 1989 में प्रकाशित किया जायेगा।
मानव मस्तिष्क के लिये सहजयोग के परिणाम अविश्वसनीय हैं। ये इतने आश्चर्यचकित कर देने वाले और इनकी कार्यशैली इतनी सरल है कि हम वैज्ञानिकों को हैरत में डाल देती है। मैं पूरी मानवता को ईमानदारी से बताना चाहता हूं कि ये वाइब्रेटेड जल श्रीमाताजी द्वारा बनाया जाता है और इसकी कुछ ही बूंदे सामान्य जल के गुणों को भी परिवर्तित कर देती हैं। इसको नम्रतापूर्वक स्वीकार किया जाना चाहिये कि श्रीमाताजी का फोटोग्राफ चैतन्य को उत्सर्जित करता है। आपको विश्वास नहीं होगा कि मैंने श्रीमाताजी के फोटो वाली अपनी अंगूठी होज पाइप में डाली और उस पानी के परिणाम भी सकारात्मक रहे। इससे भी अधिक मैंने श्रीमाताजी के बैजों को एसिड रेन से प्रभावित पेड़ों पर चिपका दिया और एक वर्ष में वे पेड़ जीवित हो उठे और उनका विकास पूरी तरह से ठीक हो रहा है।
अब सहजयोगी कहते हैं कि अब इन चमत्कारों का कोई अर्थ नहीं रह गया है। भारत में इंडियन मेडिकल रिसर्च के दो डॉक्टरों ने सहजयोग पर कार्य किया है। उनमें से एक ने सिद्ध कर दिया है कि सहजयोग से शारीरिक एवं मानसिक विकास में लाभ प्राप्त होता है। दूसरे ने दर्शाया कि इससे साइकोसोमेटिक रोगों जैसे कैंसर का इलाज किया जा सकता है। हमारे पास लाइलाज रोगों को ठीक करने के हजारों उदाहरण मौजूद हैं। हजारों लोगों ने सिगरेट व शराब पीने की व ड्रग्स लेने की अपनी खराब आदत से छुटकारा पा लिया है। ये सत्य है ... यदि हम मानवता को सचमुच मुक्त करना चाहते हैं तो हमें इसे स्वीकार करना होगा। मैंने अब तक वाइब्रेटेड जल पर अपने प्रयोगों से यही प्राप्त किया है और खोजा है। मैं आशा करता हूं कि आप लोग वाइब्रेटेड जल के अपने प्रयोगों को जारी रखेंगे। अगर आपको मुझसे अच्छे नहीं तो मेरे ही जैसे परिणाम प्राप्त होंगे तो मुझे अत्यंत प्रसन्नता होगी। हम सब सहजयोगी आपके देश का बहुत सम्मान करते हैं खासकर महाराष्ट्र का क्योंकि ये एक पावन धरती है जहाँ कई संतों ने जन्म लिया। मैं आप सबकी सफलता की कामना करता हूँ और मेरा लेख पढ़ने के लिये अपना समय देने के लिये आपका आभार भी प्रकट करता हूँ।
।। जय श्रीमाताजी ।।


















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