अनाहत चक्र
मध्य हृदय
मध्य हृदय को ठीक करने के लिये किसी प्रकार की दवा की आवश्यकता नहीं है।
एंटीबॉयोटिक दवाऐं खतरनाक है।
जब हमारा ये केन्द्र अर्थात हमारा मध्य हृदय खराब हो जाता है तो सबसे पहले आपके शरीर की एन्टीबॉडीज कम हो जाती हैं। ऐसी बहुत सारी दवायें हैं, जिनसे हमारे शरीर की एंटीबॉडीज कम होने लगती हैं, लेकिन फिर भी लोग इन दवाओं को लेते रहते हैं, क्योंकि इनको लेते रहने से उनको कुछ समय के लिये अपनी बीमारी में थोड़ा आराम मिलता है। लेकिन इन दवाओं को लेते रहने से आप अन्य रोगों के शिकार हो जाते हैं, क्योंकि आपके शऱीर में एंटाबॉडीज कम हो जाती हैं और आप अन्य रोगों से नहीं लड़ सकते और आपकी रोग प्रतिरोधक शक्ति क्षीण होने लगती है। ऐसी दवाओं को लेते समय ये भूल जाते हैं कि हम लोग संपूर्ण व्यक्तित्व हैं न कि महज भौतिक शरीर हैं। हमारा भावनात्मक और मानसिक अस्तित्व तो है ही लेकिन इन सबसे ऊपर हमारा आध्यात्मिक अस्तित्व भी है। जब हम इस पहलू को भूल जाते हैं, तो उस समय हम केवल अपने भौतिक शऱीर की चिंता करते रहते हैं और जब हमारा भौतिक शरीर रोगग्रस्त हो जाता है, तो उसको ठीक करने के लिये हम इस पृथ्वी पर उपलब्ध हर इलाज को करने की कोशिश करते हैं। परंतु हमें ये मालूम नहीं होता कि *इन उपचारों को करने से हमारा भावनात्मक पक्ष खराब हो जाता है, और जब हमारा भावनात्मक पक्ष कमजोर हो जाता है तो यह काफी खतरनाक हो सकता है।* जिन दवाओं को हम ले रहे होते हैं वे हमारे शरीर की एंटीबॉडीज को कम कर देती हैं और अंततः हम पागलपन की कगार तक पहुँच जाते हैं।. *इन दवाओं को लेते रहने से पहले तो आपको चक्कर आने लगते हैं .... और अत्यधिक नींद आती है। बहुत ज्यादा सोने से और ढेरों दवायें लेने से आप पागलपन का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि आप अवचेतन में धकेल दिये जाते हैं, जहाँ आपके ऊपर बाँई ओर के आक्रमण होने लगते हैं और फिर आप पगला जाते हैं।*
अतः इन दवाओं को सेवन बहुत ज्यादा खतरनाक होता है।चिकित्सक लोग मानव की पूरी प्रकृति जाने बिना केवल इसके एक ही भाग अर्थात भौतिक (शारीरिक) पक्ष का ही उपचार करते रहते हैं। सहजयोग में हम, जैसा कि उन्होंने आपको अभी बताया, कि मैं बिल्कुल भी कोई दवा नहीं लेती हूँ। मैं...... जैसे कबीर दासजी ने भी कहा है कि मैं तो कोई भी दवा नहीं लेता हूँ। *जो परमब्रह्म परमेश्वर हैं, वही मेरे वैद्य हैं । वे ही मेरा उपचार करते हैं।* ये सच भी है। अब वह समय आ गया है कि जैसा कबीर और नानकदेव जी ने कहा है-- शंकराचार्य और ईसामसीह ने कहा है कि *मध्य हृदय को ठीक करने के लिये किसी प्रकार की दवा की आवश्यकता नहीं है।*
*---परमपूज्य श्रीमाताजी श्रीनिर्मला देवी ।* सार्वजनिक कार्यक्रम, 9 फरवरी 1981, नई दिल्ली-भारत।
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