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(जिस प्रकार पृथ्वी अपनी धुरी के चारों ओर घूमती है उसी प्रकार हमारे सूक्ष्म यंत्र के चक्र (शक्ति केंद्र) एक विशेष गति से समतल सतह पर दक्षिणावर्त (clock wise) दिशा में अपने-अपने स्थानों पर चक्कर लगाते हैं। ये चक्र स्थूल केन्द्रों (plexuses) का निर्माण करते हैं, जो अपने चारों ओर के अंगों पर नियंत्रण रखते हैं। जब ये चक्र सुचारु रूप से अपनी गति द्वारा अपने अंगों को आवश्यकतानुसार शक्ति प्रदान करते हैं तभी शरीर के सारे अंग अपने निर्धारित कार्य सही तरह से कर पाते हैं। इन चक्रों की शक्ति हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक कार्यों में निरंतर खर्च होती रहती है इसलिए चक्रों में शक्ति का सतत प्रवाह होना अत्यन्त आवश्यक है। किसी बाधा या रुकावट के कारण यदि शक्ति का प्रवाह कम हो जाता है तो चक्र अंगों पर नियंत्रण नहीं रख पाते। अंग भी शक्ति के अभाव के कारण क्षीण होने लगते हैं तो उनके निर्धारित कार्य रुक जाते हैं या ठीक प्रकार से नहीं हो पाते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप शारीरिक रोग एवं मानसिक, भावनात्मक समस्यायेँ पैदा हो जाती हैं।)
........ मानव की सभी समस्यायेँ उनके चक्रों के कारण हैं। किसी तरह से यदि आप अपने चक्रों को ठीक कर सकें तो आपकी सारी समस्यायों का समाधान हो जाएगा। यह इतना साधारण है।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी, चिकित्सा सम्मेलन, 25.3.93
......... जब चक्रों में दोष हो जाता है तभी आप बीमार पड़ जाते हैं। अब अगर आप बाहर से किसी पेड़ को, उसके फूलों को उसके पतों को दवा दें तो थोड़ी देर के लिये तो वे ठीक हो जायेंगे फिर सत्यानाश हो जाएगा, पर अगर उनकी जड़ में जो चक्र हैं उन चक्रों को अगर आप ठीक कर दें तो बीमार पड़ने की कोई बात ही नहीं।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी
.......... ध्यान देने से आपको पता लगेगा की आपके अंदर कौन से चक्र की पकड़ है, उसे आपको साफ करना है। इसको प्रत्याहार कहते हैं, माने इसकी सफाई होनी चाहिये।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी
.......... मध्य के पांचों चक्र मूलतः भौतिक तत्वों के बने हैं तथा पांचों तत्वों से इन चक्रों का शरीर बना है। हमें पूर्ण सावधानी से इन पांचों चक्रों का संचालन करना चाहिये। जिन तत्वों से ये चक्र बने हैं उन्हीं में इनकी अशुद्धियों को निकाल कर इन चक्रों का शुद्धीकरण करना है।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी, 18.1.1983
........चक्र कुप्रभावित होने पर सम्बन्धित देवता वहाँ से स्थान त्याग कर देते हैं, अतः उस चक्र का मंत्र उच्चारण करके परम्पूज्य श्रीमाताजी के नाम की शक्ति से उस देवता का आवाहन किया जाता है। उपचार के लिये विपरीत पाश्वॅ का हाथ प्रभावित चक्र पर रखें और प्रभावित पाश्वॅ का हाथ फोटो की ओर फैलायेँ।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी, निर्मला योग, जुलाई-अगस्त, 1983
......... ऐसा नहीं है कि सहजयोग में आने के बाद आपको कोई बीमारी ही नहीं होती है, कारण यह है कि सहजयोग में आने के बाद जो ध्यान-धारणा और प्रगति आपने करनी होती है, वो आप नहीं करते। फिर भी आपके कष्ट घट जाते हैं।
........ सहजयोग में आने के बाद एक महीने में ही आप पूरी तरह से सहजयोग को समझ सकते हैं और उसमें उतर भी सकते हैं, पर जिस प्रकार रोज हम लोग स्नान करके अपने शरीर को साफ करते हैं, उसी प्रकार रोज अपने चक्रों को भी आपको साफ करना पड़ेगा।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी, दिल्ली, 2.3.1991
........यदि आपकी विशुद्धि चक्र में कोई पकड़ है तो अपना दायाँ हाथ फोटो कि ओर करें और बाँया हाथ बाहर कि ओर कर दें। जब आपको लगे कि इसमें चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं तब अपना बाँया हाथ फोटो कि ओर कर लें और दायाँ हाथ बाहर कि ओर, आपका पूरा चक्र स्वच्छ हो जाएगा।
अपनी खुली आंखो से यदि आप मेरी फोटो को देखते हैं और अपने दोनों हाथ हथेलियाँ ऊपर की ओर करके फोटो की ओर फैलाते हैं या कभी-कभी आकाश की ओर उठाते हैं, तो आपकी दृष्टि में बहुत सुधार होगा।
पृथ्वी माँ भी, यदि आप अपना सिर पृथ्वी माँ पर रखे, केवल अपना माथा पृथ्वी पर टेक लें और कहें,
“हे पृथ्वी माँ, मैं आपको अपने पैरों से छूता हूँ, इसके लिये मुझे क्षमा करें।“ वो दादी माँ हैं, जो भी कुछ आप उनसे मांगेंगे वो आपको मिल जायेगा। सब आपकी इच्छानुरूप आपको देने के लिये प्रतीक्षा कर रहे हैं।
आप श्री हनुमान और श्री गणेश की सहायता भी माँग सकते हैं।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी, मुंबई, 22.3.1977
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