Tuesday, 26 December 2017

कुंडलिनी की जागृति, दिव्य ऊर्जा को उन छह चक्रों या ऊर्जा केंद्रों के माध्यम से प्रवाहित होने की अनुमति देती है

कुंडलिनी की जागृति, दिव्य ऊर्जा को उन छह चक्रों या ऊर्जा केंद्रों के माध्यम से प्रवाहित होने की अनुमति देती है, जो शरीर के शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलुओं का ध्यान रखते हैं, आज की तेजी से आगे बढ़ रही दुनिया में हम अक्सर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हम खुद को निचोड़ लेते हैं। तनाव उसी का परिणाम है और यह हमारे शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव भी डालता है। लेकिन सहज योग स्वयं को तनावमुक्त रखने का सबसे आसान तरीका है। यह हमें प्रेम और करुणा का अनुभव करने में सक्षम बनाता है।

 मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद माना गया है।😄😃
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मौन की प्रधानता वाले सहज योग के कई आयाम हैं और शोधकर्ताओं के मुताबिक मौन की यही प्रक्रिया कायिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई रास्ते खोलती है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी मेडिकल स्कूल में मनोचिकित्सा विभाग के वरिष्ठ व्याख्याता रमेश मनोचा ने ऑस्ट्रेलिया से बताया कि हमने पाया कि सामान्य लोगों की तुलना में उन लोगों की मानसिक और शारीरिक सेहत ज्यादा अच्छी थी, जिन्होंने कम से कम दो वर्षों तक सहज योग को आजमाया था।😄😃



Sunday, 24 December 2017

परम चैतन्य क्या है? || Kundalini Jagran

😄😄Sahaj yoga meditation😄😄
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परम चैतन्य
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परम चैतन्य की सहाय्यता से सब कार्य होते हैं। चैतन्य के प्रकाश से ही सृष्टि का निर्माण हुआ । चैतन्य ही सारे सृष्टि में कण कण में विराजता है। चैतन्य का प्रकाश मतलब आत्मा का प्रकाश उस से हम जान सकते है सत्य और असत्य क्या है। चैतन्य के प्रकाश से मिथ्या अपने आप नष्ट होता है। चैतन्य की भाषा प्रेम की और परमात्मा की भाषा होती है। जो लोग बुरे कार्य करते है उन्हें चैतन्य दण्डित करता है। बुराई का नाश परमचैतन्य करता है और सत्य को विजय दिलाता है। जो लोग चैतन्य के प्रकाश के आशीर्वाद में होते हैं उनके साथ स्वयं श्री गणेश और श्री हनुमान रहते हैं। सारे देवीदेवता उनकी पवित्रता की, उनकी रक्षा करते हैं। चैतन्य सहजयोगी को बताता है कि किस मार्ग पर चलना है। किस प्रकार कार्य करने से सहजयोगी की विजय हो सकती है उनका भला हो सकता है। सहजयोगी को जिद्द कभी नही करनी चाहिए । जो मार्ग परमचैतन्य बताता है उस मार्ग पर हमेशा चलना चाहिये। चैतन्य स्वयं अपने आप कार्य करता है सिर्फ आपका चित्त शुद्ध होना चाहिए। आपकी इच्छा शुद्ध होनी चाहिये।
किसी चीज से डरने की सहजयोगी को आवश्यकता नहीं। चैतन्य मतलब शक्ति का प्रकाश मतलब माँ दुर्गा स्वयं सहजयोगी के साथ रहती हैं। अत्यंत आनंदमय स्थिति में रहना चाहिए। परेशान होनेकी जरुरत नहीं। परम चैतन्य के शक्ति का महत्व सहजयोगी को जानना चाहिए। अगर सहजयोगी बुराई की रास्ते पर जाये तो वही चैतन्य उस सहजयोगी को दण्डित भी कर सकता है। हर कार्य अत्यंत आत्म विश्वास के साथ सहजयोगी को करना चाहिए। सहजयोगी का मतलब होता है "शक्ति के पुजारी"। आप हर कार्य से शक्ति को प्रसन्न करें। सारे ही देवी देवता आपके साथ खड़े होंगे। सारे सृष्टि में परम चैतन्य की (पावनता की) शक्ति को फैलाने का का कार्य सहजयोगी को करना है।
सब कुछ बदल डालो और एक नया व्यक्ति बनो। फूल की तरह आप फूलते हैं, फिर वृक्ष बनता है और फिर आप स्थान ग्रहण करते हैं। सहजयोगी बनकर स्थान ग्रहण करें। ये आसान है। मुझे प्रसन्न करना होगा। क्योंकि मैं ही चित हूँ। मैं प्रसन्न हो गयी तब आपका काम होगा। पर भौतिक चीजों से या चर्चा करने से मैं प्रसन्न नहीं हो सकती। मैं प्रसन्न होती हूँ। आपकी तरक्की से। इस लिये स्वयं की तलाश करो।
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परम पूज्य श्रीमाताजी श्री निर्मला देवी
21.5.1984

सहजयोग की शुरूआत*

🌹🌹SAHAJAYOGA AAJ KA MAHAYOGA🌹🌹

*कैसे करें सहजयोग की शुरूआत*

माता निर्मला देवी द्वारा विकसित सहज योग मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होता है। यह मुख्य रुप से आत्म बोध का प्रचार है जिससे कुंडलिनी जागृत होकर व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार लाती है।

*1 : सहज योग*

सहज योग की खोज निर्मला श्रीवास्तव ने की, उन्‍हें ‘श्री माता जी निर्मला देवी’ के नाम से भी जाना जाता हैं। सहज योगा में कुंडलिनी जागरण व निर्विचार समाधि, मानसिक शांति से लोगों को आत्मबोध होता है और अपने आप को जानने में मदद मिलती है। माता निर्मला देवी द्वारा विकसित इस योग को मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद माना जाता है।

*2 : सहज योग क्‍या है*

सहज योग में आसान मुद्रा में बैठकर मेडिटेशन किया जाता है। इसका अभ्यास करने वाले लोगों को ध्‍यान के दौरान सिर से लेकर हाथों तक एक ठंडी हवा का एहसास होता है। सहज योगा केवल एक क्रिया का नाम नहीं हैं, बल्कि यह एक तकनीक भी है। यह मुख्य रुप से आत्म बोध का प्रचार है जिससे कुंडलिनी जागृत होकर व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार लाती है।

*3 : क्‍या कहते हैं शोध ?*

यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी मेडिकल स्कूल में मनोचिकित्सा विभाग के वरिष्ठ व्याख्याता रमेश मनोचा ने सहज पर किए शोध में पाया कि सामान्य लोगों की तुलना में उन लोगों की मानसिक और शारीरिक सेहत ज्यादा अच्छी थी, जिन्होंने कम से कम दो वर्षों तक सहज योग को आजमाया था।

*4 : सहज शब्द की उत्पति*

सहज शब्द संस्कृत के दो शब्दों को जोड़ कर बना है, ‘सह’ और 'जा'। सह का अर्थ है ‘साथ’ और ‘जा’ का अर्थ है ‘जन्म’। जब यह दोनों शब्द एक साथ मिल जाते हैं तो इसको अर्थ प्रकृति के करीब हो जाता है। सहज योग के अनुयाईयों का विश्वास है कि इससे उनके अंदर कुंडलिनी का जन्म होता है और वे उन्हें स्वत: जागृत कर सकते हैं। इस स्‍लाइड शो में सहज योग से होने वाले फायदे के बारे में जानिए।

*5 :  सामान्य स्वास्थ्य के लिए*

चिकित्सकों ने सहज योगा के अन्य प्रभावों के बारे में भी बताया है। उनके अनुसार योग को करने से लोगों में शारीरिक व मानसिक तनाव से मुक्ति व आराम मिलता है। साथ ही शरीर में होने वाली बीमारियों को जड़ को खत्म किया जा सकता है।

*6 : बीमारियों में लाभकारी*

शोधकर्ताओं के मुताबिक मौन की यह प्रक्रिया कायिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई रास्ते खोलती है। सहजयोग के नियमित अभ्यास से कैंसर, ब्लड प्रेशर, हाइपर टेंशन और हृदय के रोगियों को भी लाभ हुआ है।

*7 : विद्यार्थियों के लिए फायदेमंद*

खासकर विद्यार्थियों के लिए तो योग अमृत के समान है। जो विद्यार्थी योग को अपने जीवन में नियमित रूप से शामिल करते हैं वे न केवल पढ़ाई में अव्वल आते रहते हैं, साथ ही अन्य गतिविधियों में भी उनका कोई मुकाबला नहीं रहता।

*8 : तनाव से मुक्ति*

सहज योगा से दिमाग को शक्ति मिलती है। इस योगा से व्यक्ति को आसपास के तनाव, दिनभर की थकान व अपने गुस्से को नियंत्रित करने में आसानी होती है। जिससे नींद में भी सुधार होता है।

*9 : एकाग्रता*

सहज योग से लोगों में एकाग्रता बढ़ती है और जो वे जीवन में हासिल करना चाहते है आसानी से कर सकते हैं। इसलिए नियमित रूप से अपनी दिनचर्या में सहज योग को शमिल करें।

*10 : संचार कौशल*

सहज योगा के नियमित अभ्यास से संचार कौशल में सुधार होता है जिससे आप लोगों से अच्छी तरह से पेश आते हैं। साथ ही दूसरों के साथ बेहतर रिश्ते जोड़ने में मदद मिलती है।

*11 : बुरी आदतों / लत से छुटकारा*

किसी भी तरह की बुरी आदत व लत से जैसे धूम्रपान, मंदिरा आदि का सेवन मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए नुकसानदेह होता है। इन आदतों को छोड़ने के लिए सहज योग जैसी विधियां ज्यादा कारगर साबित होती हैं।

NOTE :

Adhik Jaankaari Ke Liye Aap visit kijiye :

www.Sahajayoga.org.in
Aur
www.freemeditation.com

🙏JAI SHREE MATA JI 🙏


Saturday, 23 December 2017

आपको विचार स्वाधिष्ठान चक्र से आते हैं ......

आपको विचार स्वाधिष्ठान चक्र से आते हैं .......
(परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मला देवी, 13-10-2007)
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स्वाधिष्ठान को संतुष्ट करने के लिये आपको मौन धारण करना होगा और स्वयं को देखना होगा कि आपको कौन सी चीज परेशान कर रही है और आपके विचार कहाँ से आ रहे हैं। ये विचार स्वाधिष्ठान से आते हैं। कुछ लोग बहुत ज्यादा सोचते हैं। उनको कोई समस्या न भी हो तो भी वे स्वाधिष्ठान से अपने लिये कोई भी समस्या सोच लेते हैं और उस बात को लेकर खुद को परेशान करते रहते हैं।
आपका स्वाधिष्ठान तब बड़ा प्रसन्न और उल्लासमय रहता है, जब आप हँसते खिलखिलाते रहते हैं और किसी बेकार की बात की चिंता नहीं करते हैं। हम बेकार की बातों पर कितना समय बरबाद करते हैं। हमें इन बेकार की बातों की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। सहजयोगियों को इसकी बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। बेकार बातों से केवल अनात्मसाक्षात्कारी लोग परेशान होते हैं। वे स्वयं तो परेशान होते ही हैं परंतु आपको भी परेशान करते हैं। परंतु आपको इन बातों को हँसी में उड़ा देना चाहिये और ऐसे लोगों को क्षमा कर देना चाहिये। वे लोग ऐसा कर रहे हैं कि क्योंकि वे अज्ञानी हैं .... वे नहीं जानते हैं कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। उनका स्वाधिष्ठान चक्र उनको इतना परेशान करता है कि वे इसमें कुछ भी नहीं कर पाते हैं।
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अपने दिमाग को फालतू बातों और विचारों से परेशान मत होने दीजिये। अनेक प्रकार के फालतू विचार जिनसे आपका कोई भी लेना-देना नहीं है, पर फिर भी ऐसे विचार आपको परेशान करते रहते हैं। ये श्रीमान स्वाधिष्ठान का ही कार्य है। ये आपको भटकाने का प्रयास कर रहा है। आपको मौन धारण कर लेना चाहिये। एक बार जब आप शांत हो जायेंगे तो फिर ये आपको परेशान नहीं करेगा।
मेरा पूरा चित्त आपके देश पर है क्योंकि आप लोग बहुत अच्छे सहजयोगी हैं। सहजयोगी पूरे विश्व में फैले हुये हैं। वे हजारों की संख्या में हैं लेकिन ऑस्ट्रिया के सहजयोगियों जैसे कोई नहीं हैं। मुझे लगता है कि वे लोग विश्व की समस्याओं के लिये गहनता से सोचते हैं तो फिर आप लोगों को क्या करना चाहिये। आपको स्वाधिष्ठान से किसी प्रकार का सरोकार नहीं रखना चाहिये। आप लोग सहजयोगी हैं और आपको अपने स्वाधिष्ठान से मतलब नहीं रखना चाहिये।
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❣ जी श्री माताजी ❣

कैसे प्राप्त करें आत्म साक्षात्कार? कुण्डलिनी जागरण और सहजयोग ध्यान विधि |

इसका उल्लेख गुरु नानक, शंकराचार्य, कबीर और संत ज्ञानेश्वर के प्रवचनों में मिलता है। यह किसी की मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक भलाई के लिए अमूल्य है। माता निर्मला देवी ने इस तकनीक को 156 से अधिक देशों में लोकप्रिय बनाया है और तनाव व पीड़ा के साथ आनेवाले थके हुए लोगों की सहायता की है। सहज योग कुंडलिनी-दिव्य ऊर्जा है, जो मेरुदंड के नीचे त्रिकास्थि के निचले भाग में स्थित होती है, जो सुषुम्ना नाड़ी, रीढ़ की हड्डी द्वारा उत्तेजित होने पर बढ़ती है, और तंत्रिका तंत्र के अनुरूप होती है। यह परमात्मा की सभी सर्वव्यापी शक्ति के साथ एक सहज जागृति और हमारी मौलिक ऊर्जा का मिलन है। कुंडलिनी की जागृति, दिव्य ऊर्जा को उन छह चक्रों या ऊर्जा केंद्रों के माध्यम से प्रवाहित होने की अनुमति देती है, जो शरीर के शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलुओं का ध्यान रखते हैं, आज की तेजी से आगे बढ़ रही दुनिया में हम अक्सर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हम खुद को निचोड़ लेते हैं। तनाव उसी का परिणाम है और यह हमारे शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव भी डालता है। लेकिन सहज योग स्वयं को तनावमुक्त रखने का सबसे आसान तरीका है। यह हमें प्रेम और करुणा का अनुभव करने में सक्षम बनाता है। सहज योग का क्या अर्थ है? ‘सह’ का अर्थ है हमारे साथ, ‘ज’ का अर्थ है पैदा हुआ और ‘योग’ का अर्थ है संघ। सहज योग इसलिए सहज है। इसके माध्यम से त्रिकास्थि हड्डी में स्थित अवशिष्ट दिव्य ऊर्जा, जागृत और सक्रिय रहती है। हमारे शरीर में तीन प्रकार की नाड़ियाँ हैं, पहला है इडा सहानुभूति तंत्रिका तंत्र, जो बाईं ओर स्थित होता है और हमारे स्वभाव को नियंत्रित करता है। दूसरा है पिंगला सहानुभूति तंत्रिका तंत्र, जो दाईं ओर स्थित होता है और हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नियंत्रित करता है। तीसरा है सुषुम्ना नाड़ी परानुकंपी तंत्रिका तंत्र, जो केंद्र में स्थित होता है और इसमें चक्र होते हैं जो हमें गुणात्मक विशेषताएं प्रदान करते हैं। यदि कोई व्यक्ति इस नाड़ी में स्थित चक्रों को सक्रिय करता है, तो वह आध्यात्मिक ऊँचाई पा सकता है और पूर्णता के साथ अपने जीवन का आनंद ले सकता है। सहज योग में मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, नाभि चक्र, अनाहत चक्र, शुद्धि चक्र, आज्ञा (यह चक्र नहीं है) और सहस्रार चक्र नामक छह चक्र शामिल होते हैं। ये सभी चक्र, हाथ पर एक खास स्थान के लिए और ब्रह्मांड के एक विशेष तत्व से संबंधित होते हैं। प्रत्येक चक्र में विशेष गुण होते हैं। पहला चक्र मूलाधार चक्र, पृथ्वी तत्व को दर्शाता है और मासूमियत व बुद्धि जैसे गुणों के लिए उत्तरदायी होता है। स्वाधिष्ठान चक्र, आग तत्व का प्रतिनिधित्व करता है और रचनात्मकता और दिव्य ज्ञान के लिए उत्तरदायी होता है। नाभि चक्र, पानी का प्रतिनिधित्व करता है और हमें जीविका और धर्म प्रदान करता है। अनाहत चक्र हवा का प्रतिनिधित्व करता है और प्रेम, मर्यादा, और निर्भयता जैसे गुणों के लिए उत्तरदायी होता है। यह आत्मा को जगाता है। आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करनेवाला शुद्धि चक्र दिव्य कूटनीति के साथ जुड़ा हुआ है। यह मन और भाषण के बीच एकीकरण को बनाए रखता है। भाषण महत्वपूर्ण होता है और सोच व भाषण के बीच एक उचित समन्वय बेहतर संचार को सफल बनाता है। आज्ञा चक्र, प्रकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है और क्षमा व पुनर्जागरण के लिए उत्तरदायी होता है। तनाव में होने पर हम अपने मस्तिष्क की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर सकते हैं। तनाव और क्रोध को नियंत्रित किया जाना चाहिए। यदि रीढ़ की हड्डी का यह क्षेत्र जागृत हो जाता है, तो हम अपने क्रोध को नियंत्रित कर सकते हैं। अंतिम चक्र है सहस्रार चक्र, यह ब्रह्मांड के सभी पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है। यह हाथ की हथेली के केंद्र में स्थित होता है। यह चक्र सामूहिक चेतना और एकीकरण के गुणों के लिए उत्तरदायी होते हैं। सहज योग मन की समस्याओं और शरीर को सुलझाने के लिए सबसे बड़ी कुंजी है। .

बाइबिल में लिखा हुआ है;कि जो आदमी .

 *क्रिसमस पर माँ के प्रवचन*
*महाअवतरण श्रीमाताजी निर्मला देवी*
*जैसे ईसा मसीह के लिए सब लोग कहते हैं कि;वह सूली पर चढ़ गए।उनके लिए वह नाटक था।उनके लिए सूली-वूली होती क्या चीज है?..................आप ही सोचिए इतना शक्तिशाली आदमी,जिसने तूफान को रोका था,क्या वह इन गधों को रोक नहीं सकता था?....वह भी चाहता तो क्रूस को गिरा देता,और सब तहस-नहस कर देता, लेकिन वह कह रहा था;कि इन बेवकूफों को थोड़ा बेवकूफ बनाएं,इसलिए वह बेवकूफ बनाकर चले गए;और हम लोग सोचते हैं कि वह Crucify हो गए वह क्या crucify होंगे अविनाशी जीव कभी crucify नहीं हो सकता।वह बार-बार आते हैं संसार में,और संसार का कल्याण करते हैं।उनको ना कोई मार सकता है।ना ही कोई प्राण ले सकता है। ना ही उनको कोई दुख दे सकता है।ना ही उनको कोई सुख दे सकता है।वह आनंद की स्थिति में रहता है।सहज योग ऐसी स्थिति में मनुष्य को पहुंचाता है*।
(22/12/73)

*महाअवतरण श्रीमाताजी निर्मला देवी*
*ईसा मसीह ने यही चाहा कि हमारा आज्ञाचक्र ठीक हो जाए,और वह आज्ञाचक्र आपके दिल्ली में बहुत पकड़ता है,इसका कारण क्या है?.................पहले अंग्रेज यहां रह गए,और अंग्रेजो ने हमें घमंड करना सिखाया।आप लोगों की बातचीत से पता कर सकते हैं*।
(दिवाली पूजा,नोएडा,2007)

* महाअवतरण श्री माताजी निर्मला देवी*
*आप लोग सहजयोगी हैं,आप को समझना चाहिए कि कौन सी चीज सौंदर्य पूर्ण है,और सौंदर्य को समझना चाहिए,तभी आप अपने जीवन को भी सुंदर बनाएंगे....कि जो आदमी आपसे मिले या औरत आपसे मिले; तो यह कहे कि बहुत ही बढ़िया आदमी है, बहुत ही सुंदर है।जिस तरह से आप अपने को सौंदर्य से सजाएंगे,इसी तरह से आसपास के वातावरण और घरों को सौंदर्य से सजाएंगे। यह पहली पहचान है।......अगर सहजयोगी भूत जैसा घूमता हो,तो किस काम का*?
(2001/12/31)

*महाअवतरण श्रीमाताजी निर्मला देवी*
*बाइबिल में लिखा हुआ है;कि जो आदमी माथे पर टीका लगाकर आएगा,वह बचेगा.. लिखा है ऐसा.....वह सहजयोगी होंगे.....और कौन होगा*?
(क्रिसमस पूजा,2000)

*महाअवतरण श्रीमाताजी निर्मला देवी*
"ये इतना सूक्ष्म दरवाजा़ है कि इसमे से गुज़रने के लिए ईसा मसीह को इस संसार में आके गुज़रना पड़ा। क्योंकि हमारे अहंकार की वजह से हमने उनको मारा, क्योंकि हम बर्दाश्त नहीं कर पाए कि कोई इंसान भगवान बनके कैसे आया है,कोई इंसान बनके कहता है कि मैं भगवान हूँ ,ये मनुष्य बर्दाश्त नहीं कर पाता,इसीलिए उन्होने उसको मारा, उन्होंने कौन सी बुराई की थी, उन्होने दुनिया भर के लोगो को अच्छा किया दुनिया भर को अच्छी बातें सिखाईं...................लेकिन जो लोग आपको गंदी बातें सिखाते हैं, ऐसे जो हमे बेवकूफ बनाते हैं,ऐसे लोगों की रात-दिन हम किताबें पढते हैं,और उनके चरणों मे जाके रहते हैं.................उनके लिये हम पैसे लुटाते हैं और उनके लिए हम दुनिया भर की चीज़ करने के लिए तैयार हैं..........और अगर कोई ऐसा सच्चा आदमी आकर खड़ा होता है ,तो उसको क्रूस पर चढ़ा देते हैं, इस.तरह के महामूर्ख और अहंकारी लोगों को एक बहुत बड़ा लेसन देने के लिए...........स्वयं साक्षात परमेश्वर ने इस संसार मे अपने इकलौते बेटे को भैजा जिसको आपने क्रास पे चढ़ा दिया, ये आपके अकल के नमूने देखिये,जो आपने तारे तोड़े हुए हैं।और इसी प्रकार आप हर बार करते आए हैं, पहले कोई भी incarnation आया तो मनुष्य इसी प्रकार करता गया और सत्य सेभागता गया।.....
आज मैं सुनती हूँ कि लोग शिरडी बहुत जाते हैं, हलाँकि वहाँ से अब साईंनाथ उठ गये वहाँ इतनी गंदगी कर रखी ,शिरडी इसलिए क्योंकि आज यहाँ साईंनाथ मौजूद नहीं हैं,जब शिरडी के साईंनाथ थे तो उनको खाने को नहीं था.........मनुष्य की महामूर्खता जो है कि जो मर गया उसके पीछे दौड़ना...................
आपने देखा है कि बहुत से यहाँ पे शिरडी के भक्त आए थे और उनसे पूछा गया कि साक्षात माताजी आप शिरडी के साईंनाथ हैं तो उनके अंदर से vibration आए सही बात है। जब भी कोई incarnation आया तो उससे पूछा जाता तो आपको उसका उत्तर मिल जाता, लेकिन जब भी कोई आया तो आप पिछला जो मरा हुआ है उसको लेके बैठे हैं।"
(कुंडलिनी&जीसस, 270779)

*महाअवतरण श्रीमाताजी निर्मला देवी*
*ईसा मसीह ने कहा था कि, मैं अल्फा और ओमेगा हूं।अल्फा माने शुरुआत,और ओमेगा माने अंत।अबइससे सिद्ध हो गया कि ईसा मसीह जो थे,जो अल्फा और ओमेगा बन गए, वही श्री गणेश,वही ओंकार और वही स्वास्तिक ,अब हिटलर ने भी स्वास्तिक इस्तेमाल किया,उसको मेरे ख्याल से यह दलाई लामा वगैरह लोगों ने बताया की स्वास्तिक लगाओ।स्वास्तिक अगर ठीक से बनाया हो, जिसकी गति राइट साइड में होती है,स्वास्तिक प्रगतिशील होता है,वह इन्नोसेंस को बढ़ाता है,और अगर उसकी गति लेफ्ट साइड की हो गई,माने चक्र उल्टे हो गए तो, मनुष्य का सर्वनाश हो सकता है।उसको हर तरह की बीमारियां हो सकती हैं,और ऐसी बीमारियां हो सकती हैं कि,जिसको आप बिल्कुल किसी भी तरह से ठीक नहीं कर सकते,जैसे कि आप जानते हैं,हमारे जो स्नायु है,मसल्स हैं वह एक बार शिथिल होने लग जाते हैं ,उसमें आदमी जो है हिलने लग जाता है ,और उसकी यह बीमारी ठीक नहीं हो पाती ,धीरे धीरे उसके मसल्स कमजोर होते जाते हैं ,यह श्री गणेश की उलटी दिशा में घूमने की वजह से होता है ,वही हाल हिटलर का हुआ।हिटलर ने श्री गणेश की शक्ति इस्तेमाल करने के लिए यह स्वास्तिक बनाया,जब तक वह सीधी तरह से बना था, स्टेंसिल से बनाते थे ,तब तक वह काफी बढ़ते रहें फिर वही स्टैंसिल दूसरी तरफ से इस्तेमाल करना शुरू किया ,तो उलट गए उसके उलटे हो जाने से ही हिटलर हार गया। स्वस्तिक का इसीलिए महत्व है।बहुत से लोग कहते हैं कि ,मोहम्मद साहब ने इतनी सारी सारी शादियां क्यों की?यह समयाचार है,उस जमाने में इतने लोग मारे गए थे ,यंग लोग मारे गए थे,आदमी लोग ,तो औरतों के पास कोई व्यवस्था ही नहीं थी कि, वह कुछ ना कुछ ऐसे कामों में लग जाएं, जिससे कि वह अपना धन उपार्जन कर सके, तो वह करते क्या?और विवाह एक बंधन है, जिससे कि मनुष्य पवित्र रह सकता है, इसलिए मोहम्मद साहब ने इतनी शादियां करके उन लोगों को बचाने की कोशिश की, उन औरतों को जो कि गलत रास्तों पर जा सकती थी,इसको समझने के लिए आप कृष्ण को भी देखिए कि,उसकी 16000 पत्नियां थी ,अब वह पुरुष थे,और पुरुषों पर लांछन पहले लगते हैं, हम मां हैं हमारे ऊपर कोई लांछन नहीं लगा सकता,वह अगर इन 16000 अपनी शक्तियों को अपने साथ रखते तो, लांछन हो जाता जो उनकी 16000 शक्तियां और पंचमहाभूत की शक्तियां यह सब उन्होंने सोचा कि शादी कर ले ठीक ,कोई नहीं कुछ कह सकता ,तो यह उनकी शक्तियां थी,जिनसे उन्होंने शादी की। इस प्रकार हमारे यहां भी कि ,यह जो परमात्मा के अवतरण हुए हैं,उन्होंने ऐसे काम क्यों किए,जो कि समाजनीति से अलग, देखने में विचित्र लगते हैं,क्योंकि वह अवतरण है ,वह परमात्मा का अंश है,वह परमात्मा का स्वरूप ही है,वह जो भी करें अच्छा ही करते हैं,पाप नहीं करते ,उनके अंदर श्री गणेश पूर्णतया जागृत हैं,इस प्रकार हमें सोचना चाहिए कि,सिर्फ श्री गणेश की पूजा करने से नहीं होगा ,उनकी महत्ता गाने से नहीं होगा ,और उन पर लेक्चर देने से भी नहीं होगा उनको अपने अंदर जाग्रत करना चाहिए ,यह जागृति आप सबकी तो हो ही गई है।
(Shri Ganesh Puja,Delhi-India,1993)

Friday, 22 December 2017

अबोध व्यक्ति का कोई भी शोषण नहीं कर सकता ......



अबोध व्यक्ति का कोई भी शोषण नहीं कर सकता ......

(परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मला देवी, 22/09/2001, श्री गणेश पूजा, निर्मल टैम्पल इटली) 

 मैंने आपसे कहा है कि आप लोगों को अपने बच्चों पर बिल्कुल भी नाराज नहीं होना चाहिये। आपको उन्हें सजा भी नहीं देनी है। बच्चों पर हमारे स्नेहपूर्ण चित्त का होना ही हमारी मुख्य उपलब्धि है। विश्व भर में चाहे आपके परिवार का बच्चा हो या किसी और के परिवार का .... वे एकदम अबोध होते हैं और उनको बचाने के लिये सभी प्रयास करते हैं। ये आश्चर्यचकित कर देने वाला है कि जब बच्चों की अबोधिता पर किसी प्रकार का आक्रमण होता है तो लोग किस प्रकार से अपना जीवन दाँव पर लगाने को तैयार हो जाते हैं? बच्चों पर कभी भी आक्रमण नहीं किया जाना चाहिये। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनके पास स्वयं को बचाने की शक्ति होती है, परंतु आपको अपनी ऊर्जा ऐसी चीजों पर बरबाद नहीं करनी चाहिये जो बिल्कुल भी शुभ न हो.... एकदम क्रूरतापूर्ण और बेहूदी हो। 

यदि आप बच्चों को प्रेम नहीं कर सकते तो फिर किसी भी चीज से प्रेम नहीं कर सकते हैं। भाग्यवश अभी तक मुझे कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने कहा हो कि उसे बच्चों से प्रेम नहीं है। यदि ऐसा है तो फिर आप किसी को भी प्रेम नहीं कर सकते। हो सकता है कुछ लोग कहें कि मुझे फूलों से प्रेम है क्यों? आप क्यों फूलों से प्रेम करते हैं? क्योंकि वे एकदम अबोध हैं .... क्योंकि उनके अंदर अबोधिता की सुंदरता है। आप क्यों प्रकृति से प्रेम करते हैं? क्योंकि ये एकदम अबोध हैं। लेकिन सबसे अधिक अबोधिता तो सहजयोगियों के अंदर देखने को मिलती है। चालाक होना आसान है ..... चालाक होना बहुत आसान है। चतुर होना बहुत आसान है लेकिन बुद्धिमान होने के लिये  अबोध होने की सुंदरता को समझना चाहिये। हो सकता है कि कोई कहे कि "माँ, यदि कोई अबोध हैं, तो लोग इसका फायदा उठा सकते हो। कोई भी अबोध व्यक्ति का शोषण नहीं कर सकता। वे मान सकते हैं कि उन्होंने यह किया है, वे बहुत आक्रामक रहे हैं और यह सब किया, लेकिन वे नहीं कर सकते .... वे मान सकते हैं कि वे बच्चों के प्रति काफी उग्र रहे हैं.... लेकिन वे अबोध व्यक्ति का शोषण नहीं कर सकते।


माफ कर दो, याद रखने में क्या लाभ*

*माफ कर दो, याद रखने में क्या लाभ*

*".......जो कुछ भी हुआ आपके साथ मे उसको मेरे चरणों पर छोड दो। बाकि मै संभालूंगी।* और जो हो चुका उसे भूल जाओ, उसके बारे में चिंता करना, अरे ये हुआ वो हुआ, उसे कैसे सही करें, *वो आदमी ठीक नहीं, ये, वो। बुद्धिमत्ता "माफ" कर देने में है।* ईसा मसीह ने क्षमा के बारे में कहा है," माफ कर दो, याद रखने में क्या लाभ?
.......इसने ये कहा था, उसने ये किया था। बस भूल जाइए, एक बार आप ये सब बेकार भूलना शुरू करेगे, आप देखेंगे कि आपको सिर्फ "अच्छी" बातें याद रहेगी और आप बुरी बातें भूल जायेंगे। आप याद नहीं रखेंगे कि किसने आपकी बेइजजती की, आपको बुरा भला कहा, दुख पहुंचाया या दुर्व्यवहार किया।"

*परमपूज्य श्री माताजी निर्मलादेवी*
*दिसंबर १९९१, ख्रिसमस पूजा*
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ईसामसीह के जन्म के समय एक तारे को देखा गया ....
(श्रीमाताजी निर्मला देवी, 25/12/1999)

आज हम श्री ईसामसीह का जन्मदिन मनाने जा रहे हैं। वे इस धरती पर एक विशेष तरीके से आये क्योंकि उनका जन्म एक कुँवारी माँ के गर्भ से हुआ था। हम लोग इस बात को समझ सकते हैं क्योंकि श्रीगणेश का जन्म भी इसी तरह से हुआ था। जैसा कि हम जानते हैं कि श्रीईसा श्रीगणेश के ही अवतरण हैं .... तो उनके पास के पास जन्म से ही श्रीगणेश की सभी शक्तियाँ मौजूद थीं। श्रीईसामसीह को किसी बाह्य हथियार को लाकर दिखाने की आवश्यकता ही नहीं थी कि उनके पास कौन सी शक्तियाँ थीं लेकिन उनके अंदर सभी शक्तियाँ मौजूद थीं.... फिर भी उन्होंने सहनशीलता और समझदारी दिखाई क्योंकि उनके समय में जिन लोगों के साथ उनको रहना पड़ता था वे आध्यात्मिकता से बिल्कुल अनजान थे। जिन लोगों के साथ वे रहते थे, वे यहूदी लोग थे और उन लोगों को मोज़ेज, अब्राहम जैसे लोग निर्देश देते थे, लेकिन उन लोगों ने अपनी जड़ों को छोड़ दिया था और उन्हें पता ही नहीं था कि वे क्या ढूँढ रहे थे और उस चीज को वे किस प्रकार से ढूँढें? वे लोग साधक भी नहीं थे। वे अपने यहूदी रीति रिवाजों के साथ ही संतुष्ट थे। अन्य धर्मों के लोग भी यही करते हैं। वे किसी बड़ी चीज के लिये साधना नहीं कर रहे थे।

अतः ईसा का जीवन बड़ा ही कठिन था। जब उनका जन्म हुआ तो उस समय एक तारे को देखा गया। तीन लोगों ने इस तारे को देखा और वे उस तारे देखते हुये उस स्थान पर पहुँचे जहाँ पर ईसामसीह का जन्म एक गोशाला में हुआ था। ये एक बहुत ही साधारण स्थान था, जहाँ उन्होंने जन्म लिया। उनका जन्म बड़ी कठिनाइयों में हुआ था लेकिन उनके जन्म के साथ तारे के दिखने से ये दर्शाया गया कि धरती पर किसी महान आत्मा ने जन्म ले लिया है। अभी एक दिन किसी ने मुझसे पूछा कि आपने गणपतिपुले को किस प्रकार से ढूँढा? वास्तव में मुझे तो इसका पता ही नहीं था। महाराष्ट्र में ये कोई बहुत जाना पहचाना स्थान भी नहीं है। यहाँ के लोग अष्टविनायकों के दर्शन के लिये जाते हैं परंतु इस महागणपति के दर्शन के लिये नहीं जाते। उनको इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था।
एक बार मैं रत्नागिरी से आ रही थी तो मैंने इस मंदिर के ऊपर एक बहुत बड़ा तारा देखा लेकिन समस्या ये थी कि उस तारे को किसी और ने नहीं देखा। उस समय कोई सहजयोगी भी इसको देख नहीं पाये। मैंने उनसे कहा कि चलो इस तारे के पीछे चलते हैं।

 ये तारा बहुत ही बड़ा था ..... असाधारण रूप से बड़ा तारा जो किसी सामान्य तारे जैसा बिल्कुल भी नहीं था। ये बहुत बड़ा था और एकदम असाधारण तारा था लेकिन फिर भी किसी ने इसे नहीं देखा। मेरे साथ जो लोग थे उन्होंने कहा कि हम उस तारे को देख नहीं पा रहे हैं। मैंने कहा कोई बात नहीं है। मैंने उनको मुड़ने को कहा और कहा कि चलो अब दूसरी ओर की सड़क पर चलते हैं और हमने इसका पीछा किया। उन लोगों ने मेरी बात मानी और किसी प्रकार का वाद विवाद नहीं किया। हम लोग चलते रहे .... चलते ही रहे। चलते-चलते हमें बहुत देर हो चुकी थी। मैंने कहा कि कोई बात नहीं अभी थोड़ा और चलते हैं। जब हम गणपतिपुले पहुँचे तो भोर हो चुकी थी .... बहुत सुंदर भोर हो चुकी थी। मैं उस नजारे को कभी नहीं भूल सकती। उस भोर के उजाले में हमने एक अत्यंत सुंदर स्थान देखा जहाँ हम लोग अभी खड़े हैं। मैंने उनसे कहा कि हम लोगों को इस जगह पर आना चाहिये .... जहाँ हमें सारे सहजयोगियों को एकत्र करना चाहिये। निसंदेह आप सभी जानते हैं कि कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस स्थान के बारे में पहले ही वर्णन किया है कि इस स्थान पर .... इस भारत के छोर पर विश्व भर से बहुत से लोग आया करेंगे। इसके बारे में भविष्यवाणी कर दी गई थी परंतु मैंने कितने चमत्कारी तरीके से इसको ढूँढा ये भी काफी हैरान करने वाला है .... ठीक उन तीन महान आत्माओं की तरह से जिन्होंने ईसामसीह को ढूँढ लिया था।

Thursday, 21 December 2017

आत्मनिर्भय और आत्मविश्वास × निडरता से विकसित करें



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          आत्मनिर्भय और आत्मविश्वास ×  निडरता से विकसित करें


         यदि आपको देवी में विश्वास है तो आप जान लें कि वे बहुत शक्तिशाली हैं, वे अत्यंत विवेकशील  हैं।  यदि उनको आपकी रक्षा करनी है तो वे इस प्रकार से आपकी रक्षा करेंगी कि आप समझ ही नही पाएंगे। अनुभव से यह विश्वास विकसित किया जाना चाहिए कि किस प्रकार आपकी रक्षा की गयी और किस प्रकार आप कठिनाइयों से बच सकते हैं।
          यदि वास्तव में देवी की पूजा करते हैं तो आपको किसी प्रकार की चिंता या भय नहीं होना चाहिए। जो भी आप कर रहे हैं, उसे निडरतापूर्वक करें। देवी की सभी शक्तियां आपमें अभिव्यक्त होने लगेगी। इस प्रकार आप आत्मनिर्भय होने लगेंगे और इस आत्मविश्वास का विकसित होना भी आवश्यक है। जब आप आत्मनिर्भय हो जाएं तो आप न  केवल अपनी सहायता कर सकते है परन्तु अन्य लोगों की भी सहायता कर सकते हैं।*

*---परमपूज्य श्रीमाताजी,* निर्मल योगा 16.03.1984, कबेला 09.10.1994



चक्रों में दोष के कारण एवं उनका शुद्धीकरण

चक्रों में दोष के कारण एवं उनका शुद्धीकरण
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(जिस प्रकार पृथ्वी अपनी धुरी के चारों ओर घूमती है उसी प्रकार हमारे सूक्ष्म यंत्र के चक्र (शक्ति केंद्र) एक विशेष गति से समतल सतह पर दक्षिणावर्त (clock wise) दिशा में अपने-अपने स्थानों पर चक्कर लगाते हैं। ये चक्र स्थूल केन्द्रों (plexuses) का निर्माण करते हैं, जो अपने चारों ओर के अंगों पर नियंत्रण रखते हैं। जब ये चक्र सुचारु रूप से अपनी गति द्वारा अपने अंगों को आवश्यकतानुसार शक्ति प्रदान करते हैं तभी शरीर के सारे अंग अपने निर्धारित कार्य सही तरह से कर पाते हैं। इन चक्रों की शक्ति हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक कार्यों में निरंतर खर्च होती रहती है इसलिए चक्रों में शक्ति का सतत प्रवाह होना अत्यन्त आवश्यक है। किसी बाधा या रुकावट के कारण यदि शक्ति का प्रवाह कम हो जाता है तो चक्र अंगों पर नियंत्रण नहीं रख पाते। अंग भी शक्ति के अभाव के कारण क्षीण होने लगते हैं तो उनके निर्धारित कार्य रुक जाते हैं या ठीक प्रकार से नहीं हो पाते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप शारीरिक रोग एवं मानसिक, भावनात्मक समस्यायेँ पैदा हो जाती हैं।)

........ मानव की सभी समस्यायेँ उनके चक्रों के कारण हैं। किसी तरह से यदि आप अपने चक्रों को ठीक कर सकें तो आपकी सारी समस्यायों का समाधान हो जाएगा। यह इतना साधारण है।

प॰ पू॰ श्रीमाताजी, चिकित्सा सम्मेलन, 25.3.93

......... जब चक्रों में दोष हो जाता है तभी आप बीमार पड़ जाते हैं। अब अगर आप बाहर से किसी पेड़ को, उसके फूलों को उसके पतों को दवा दें तो थोड़ी देर के लिये तो वे ठीक हो जायेंगे फिर सत्यानाश हो जाएगा, पर अगर उनकी जड़ में जो चक्र हैं उन चक्रों को अगर आप ठीक कर दें तो बीमार पड़ने की कोई बात ही नहीं।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी

.......... ध्यान देने से आपको पता लगेगा की आपके अंदर कौन से चक्र की पकड़ है, उसे आपको साफ करना है। इसको प्रत्याहार कहते हैं, माने इसकी सफाई होनी चाहिये।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी

.......... मध्य के पांचों चक्र मूलतः भौतिक तत्वों के बने हैं तथा पांचों तत्वों से इन चक्रों का शरीर बना है। हमें पूर्ण सावधानी से इन पांचों चक्रों का संचालन करना चाहिये। जिन तत्वों से ये चक्र बने हैं उन्हीं में इनकी अशुद्धियों को निकाल कर इन चक्रों का शुद्धीकरण करना है।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी, 18.1.1983

........चक्र कुप्रभावित होने पर सम्बन्धित देवता वहाँ से स्थान त्याग कर देते हैं, अतः उस चक्र का मंत्र उच्चारण करके परम्पूज्य श्रीमाताजी के नाम की शक्ति से उस देवता का आवाहन किया जाता है। उपचार के लिये विपरीत पाश्वॅ का हाथ प्रभावित चक्र पर रखें और प्रभावित पाश्वॅ का हाथ फोटो की ओर फैलायेँ।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी, निर्मला योग, जुलाई-अगस्त, 1983

......... ऐसा नहीं है कि सहजयोग में आने के बाद आपको कोई बीमारी ही नहीं होती है, कारण यह है कि सहजयोग में आने के बाद जो ध्यान-धारणा और प्रगति आपने करनी होती है, वो आप नहीं करते। फिर भी आपके कष्ट घट जाते हैं।
........ सहजयोग में आने के बाद एक महीने में ही आप पूरी तरह से सहजयोग को समझ सकते हैं और उसमें उतर भी सकते हैं, पर जिस प्रकार रोज हम लोग स्नान करके अपने शरीर को साफ करते हैं, उसी प्रकार रोज अपने चक्रों को भी आपको साफ करना पड़ेगा।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी, दिल्ली, 2.3.1991

........यदि आपकी विशुद्धि चक्र में कोई पकड़ है तो अपना दायाँ हाथ फोटो कि ओर करें और बाँया हाथ बाहर कि ओर कर दें। जब आपको लगे कि इसमें चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं तब अपना बाँया हाथ फोटो कि ओर कर लें और दायाँ हाथ बाहर कि ओर, आपका पूरा चक्र स्वच्छ हो जाएगा।
अपनी खुली आंखो से यदि आप मेरी फोटो को देखते हैं और अपने दोनों हाथ हथेलियाँ ऊपर की ओर करके फोटो की ओर फैलाते हैं या कभी-कभी आकाश की ओर उठाते हैं, तो आपकी दृष्टि में बहुत सुधार होगा।
पृथ्वी माँ भी, यदि आप अपना सिर पृथ्वी माँ पर रखे, केवल अपना माथा पृथ्वी पर टेक लें और कहें,
“हे पृथ्वी माँ, मैं आपको अपने पैरों से छूता हूँ, इसके लिये मुझे क्षमा करें।“ वो दादी माँ हैं, जो भी कुछ आप उनसे मांगेंगे वो आपको मिल जायेगा। सब आपकी इच्छानुरूप आपको देने के लिये प्रतीक्षा कर रहे हैं।
आप श्री हनुमान और श्री गणेश की सहायता भी माँग सकते हैं।
प॰ पू॰ श्रीमाताजी, मुंबई, 22.3.1977

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🇮🇳Sahaj yoga meditation 🌹
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स्थान- भारतीय विद्या भवन मुंबई
दिनाक - २२/०३ १९७७
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प्रश्न १- श्रीमाताजी चैतन्य लहरियाँ
क्या हैं ?
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उत्तर - बहुत ही अच्छा प्रश्न हैं ।
पहला प्रश्न ये है कि चैतन्य लहरियां क्या
हैं? कल मैंने आपसे बताया था कि हमारे
हृदय के अंदर एक ज्योति है जो हमेशा
जलती रहती है, ये आत्मा है जो हमारे हृदय
में परमात्मा का प्रतिबिम्ब है । संक्षिप्त
में मैं आपको इसके विषय में बताऊंगी ।
कुण्डलिनी जब उठती है तो क्या होता
है? ये ब्रहम रंध्र को खोलती है । यहाँ पर
सदाशिव की पीठ है । यहाँ सहस्त्रार पर
यह पीठ है । परन्तु सदाशिव हृदय में हैं
आत्मा के रूप में प्रतिबिम्बित । पीठ का
सृजन इसलिए किया जाता है क्योंकि ये
सर्वव्यापी सूक्ष्म-शक्ति को ग्रहण करती
है । स्थूल के अंदर विद्यमान सर्वव्यापी
शक्ति , उदाहरण के रूप में ये माईक मेरी
आवाज़ को ग्रहण करता है । आवाज़ सूक्ष्म
शक्ति है जो इस माईक के माध्यम से एकत्र
होती है । और यदि आपके पास रेडियो हो
तो वह भी इस आवाज़ को पकड़ेगा ।
इसी प्रकार से मस्तिष्क में पीठ है , और
सदाशिव की पीठ यहाँ ऊपर (सहस्त्रार) है
इसलिए खुलती है ताकि सूक्ष्म और स्थूल
सूक्ष्मतंत्रिका के माध्यम से हमारे हृदय में
प्रवेश कर सके । जैसे गैस का प्रकाश जिसमें
टिमतिमाहट होती है, जब गैस खुलती है
तो प्रकाश हो जाता है । चैतन्य लहरियाँ
हमारे अंदर से गुजरने वाला वही प्रकाश है ।
ये चैतन्य लहरियाँ हमारे अंदर से प्रवाहित
होने लगती हैं । अब मैं क्या करती हूँ ? पूछेंगे, "श्रीमाताजी आप क्या करती हैं?" मैं कुछ
नहीं करती केवल आपको वह शक्ति देने का प्रयास करती हूँ , जो आप कह सकते हैं
कि गैस शक्ति है । यह गैस आप है क्योंकि
कुंडलिनी जानती है कि मैं आपके सम्मुख हूँ
इसलिए वह उठती है , प्रकट होती है और
प्रवाहित होने लगती है। परन्तु जब तक आप
सूक्ष्म नहीं बनते आप इसे महसूस नहीं कर
सकते आप कह सकते है कि मैं सीमित में
असीम हूँ या आप कह सकते हैं कि मैं
असीमित में सीमित हूँ । मैं दोनों हूँ ।
इसलिए सारी सूक्ष्म ऊर्जा में जो ऊर्जा
प्रवाहित होती है वह मेरे अंदर से गुजरती है
मैं विराट हूँ । विराट के अंदर से ही सभी
कुछ प्रवाहित होता है । ये सर्व व्यापी
शक्ति में जाता है । यह सर्व व्यापी है ।
सर्वत्र , सभी व्यक्तियों में ये प्रवाहित
हो रहा है । छोटी सी कोशिका में भी,
कार्बन के अणु में तथा अन्य सभी अणुओं में
ये विद्यमान है। ये सूक्ष्म ऊर्जा है जो मेरे
माध्यम से प्रवाहित हो रही है। जब आप
सूक्ष्म हो जाते हैं तो रेडियो कि तरह से
बनकर इसे ग्रहण करते हैं। ठीक क्या है और
गलत क्या है , इस बात को आप कैसे जानेगे?
आप सूक्ष्म से पूछें ? सूक्ष्म आपको उत्तर
देता है और आपको अपने हाथों पर उत्तर
प्राप्त होता है । ये इस तरह से होता है ।
तो ये चैतन्य लहरियां है जिन्हें आप सर्व
व्यापी शक्ति से प्राप्त करते हैं , जिसे
आप मुझसे , सर्वव्यापी से, प्राप्त करते हैं ।
सभी दिशाओं से यह एक जैसी है, ये चैतन्य
लहरियां हैं .........................।
Beautiful research😃😄,:---
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😄Sahaj yoga meditation😃😄
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तन और मन के लिए काफी लाभकारी है सहज योग
मानसिक शांति के लिए कारगर योग विधा के तौर पर दुनिया भर में तेजी से स्वीकृत हो रहे सहज योग की उपयोगिता पर एक नए ऑस्ट्रेलियाई शोध ने भी मुहर लगा दी है। माता निर्मला देवी द्वारा विकसित इस विधा को मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद माना गया है।😄😃
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मौन की प्रधानता वाले सहज योग के कई आयाम हैं और शोधकर्ताओं के मुताबिक मौन की यही प्रक्रिया कायिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई रास्ते खोलती है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी मेडिकल स्कूल में मनोचिकित्सा विभाग के वरिष्ठ व्याख्याता रमेश मनोचा ने ऑस्ट्रेलिया से बताया कि हमने पाया कि सामान्य लोगों की तुलना में उन लोगों की मानसिक और शारीरिक सेहत ज्यादा अच्छी थी, जिन्होंने कम से कम दो वर्षों तक सहज योग को आजमाया था।😄😃
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वे सहज योग पर अपने हालिया शोध का जिक्र कर रहे थे, जो मानसिक खामोशी के तौर पर ध्यान की उपयोगिता पर केंद्रित था। इस शोध में 348 से अधिक लोगों को शामिल किया गया। उन्होंने सिडनी मेडिकल स्कूल के देबोराह ब्लैक एवं लीग विल्सन के साथ मिलकर इस शोध को पूरा किया।
मौन-ध्यान पर शोध करने वाले अग्रणी शोधकर्ताओं में से एक मनोचा ने बताया कि सहज योग करने वाले लोगों की मानसिक और शारीरिक सेहत एवं मानसिक नि:शब्दता के बीच एक सतत समीकरण विकसित हो जाता है। इसकी पुष्टि इस शोध से भी हुई है। शोध में शामिल लोगों में से 52 फीसदी ने 'रोजाना कई बार' मौन की इस योग विधा को अपनाया, जबकि 32 फीसदी ऐसे थे जो दिन में 'एक बार या दो बार' इस योग को आजमाते थे।😄😃
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इस पर रोशनी डालते हुए उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति इस मानसिक अनुशासन के तहत विचार प्रवाह की रफ्तार को धीमा करने की कोशिश करता है तो निश्चित तौर पर पहले और अगले विचार के बीच अंतराल बढ़ने लगता है। धीरे-धीरे विचारशून्यता का यह दायरा बढ़ने लगता है और एक स्थिति ऐसी भी आती है जब लंबे समय तक दिमाग विचारशून्यता के चरण में प्रवेश कर जाता है। अंतत: ऐसा चरम बिंदु आता है जब विचार का प्रवाह पूरी तरह ठहर जाता है, पर ध्यानमग्न व्यक्ति तब भी सचेत और जागरूक रहता है। दिमाग की यही विचारशून्यता उसकी सेहत बढ़ाती है। यह स्थिति उन्मादी आनंद का न होकर, उन्मुक्त प्रशांति एवं आनंद की होती है।😄😃
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उनका मानना है कि शराबखोरी और तंबाकू सेवन जैसी समस्याओं का पाश्चात्य समाधान मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए नुकसानदेह है, जबकि सहज योग जैसी विधियां इसमें ज्यादा कारगर हैं। उन्होंने कहा कि हमने तनाव, दमा, रजोनिवृत्ति और मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से सैकड़ों लोगों पर सहज योग के असर का आकलन किया है। निष्कर्ष वाकई उत्साहवर्धक रहा है।😄😃
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Jai Shree mata ji.....
ध्यान क्या है?
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—निर्विचार का एक क्षण। निर्विचार की एक दशा, एक अंतराल। और यह सदा ही घट रहा है, लेकिन तुम इसके प्रति सजग नहीं हो; वरना तो इसमें कोई समस्या नहीं है। एक विचार आता है, फिर दूसरा आता है, और उन दो विचारों के बीच में सदा एक छोटा सा अंतराल होता है। और वह अंतराल ही दिव्य का द्वार है, वह अंतराल ही ध्यान है। यदि तुम उस अंतराल ही ध्यान है। यदि तुम उस अंतराल में गहरे देखो, तो वह बड़ा होने लगता है।
मन ट्रैफिक से भरी हुई एक सड़क की तरह है; एक कार गुजरती है फिर दूसरी कार गुजरती है फिर दूसरी कार गुजरती है। और तुम कारों से इतने ज्यादा ग्रसित हो कि तुम्हें वह अंतराल तो दिखाई ही नहीं पड़ता जो दो कारों के बीच सदा मौजूद है। वरना तो कारें आपस में टकरा जाएंगी। वे टकराती नहीं; उनके बीच में कुछ है जो उन्हें अलग रखता है। तुम्हारे विचार आपस में नहीं टकराते, एक दूसरे पर नहीं चढ़ते, एक दूसरे में नहीं मिल जाते। वे किसी भी तरह एक दूसरे पर नहीं चढ़ते। हर विचार की अपनी सीमा होता है, हार विचार परिभाष्य होता है। लेकिन विचारों का जुलूस इतना तेज होता है, इतना तीव्र होता है कि अंतराल को तुम तब तक नहीं देख सकते, जब तक कि तुम उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहे हो। उसकी खोज नहीं कर रहे हो।....

श्री माँ की ममता को feelकर ने के लिए video को पूरा देखें कुण्डलिनी जागरित अवस्था में आ जाएगी

कैसे प्राप्त करें आत्म साक्षात्कार? कुण्डलिनी जागरण और सहजयोग ध्यान विधि |

इसका उल्लेख गुरु नानक, शंकराचार्य, कबीर और संत ज्ञानेश्वर के प्रवचनों में मिलता है। यह किसी की मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मि...