Friday, 20 April 2018

छठा चक्र जिसे इस्लाम में पुल-सीरत कहा जाता है /देवदूत के साथ पैगम्बर मोहम्मद को मिलने के लिये आये









अध्याय 4
इस्लाम एनलाइटैन्ड ......
क्षमा की शक्ति
(लेखक सहजयोगी जावेद खान)

छठा चक्र जिसे इस्लाम में पुल-सीरत कहा जाता है वह सातवें चक्र में जाकर खुलता है। जब स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं तो साधक को परमानंद की प्राप्ति होती है और जैसा कि पूर्व के अध्यायों में बताया गया है कि परम पिता परमेश्वर का प्रेम उसके अंदर से बहने लगता है। इसका रहस्य केवल (लोगों को और स्वयं को) क्षमा कर देना है। पैगम्बर मोहम्मद ने अपने उदाहरण से क्षमा का सार बताया। उनके इसी क्षमा के गुण के कारण उनके अनुयायियों की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होने लगी। वे अपने सभी अनुयायियों को शिक्षा देते थे कि अपने उत्थान के लिये उनको सबको क्षमा करना चाहिये। एक बार पैगम्बर मोहम्मद अल्लाह का संदेश का प्रचार करने के लिये तैफ नाम के गाँव गये जो मक्का के पास एक पहाड़ी स्थान था।

 उस गाँव के मुखिया ने उनको झूठा कहते हुये उनका मज़ाक उड़ाया कि अल्लाह को क्या तुम्हारे अलावा कोई और खुदा का बंदा नहीं मिला पैगम्बर बनाने को। पैगम्बर उसकी बात सुन कर उदास हो गये और वे तैफ गाँव को छोड़ कर चले गये। तैफ के लोगों ने उन पर पत्थर बरसाने के लिये छोटे छोटे बच्चों को भेजा जो उन पर बेरहमी से पत्थर बरसाने लगे। उनके शरीर से खून बहने लगा और वे गाँव छोड़ कर चले आये। वे अल्लाह से प्रार्थना करने लगे और रोने लगे। अल्लाह ने जब ये सब देखा तो वे बहुत खफा हुये। देवदूत गैब्रियल और एक अन्य देवदूत के साथ पैगम्बर मोहम्मद को मिलने के लिये आये। वह दूसरा देवदूत पर्वतों तक को जीत सकता था। 
तैफ गाँव पर्वतों के बीच बसा हुआ था। देवदूतों ने हज़रत मोहम्मद से पूछा कि अगर आप चाहें तो हम तैफ को पर्वतों के बीच दबाकर चकनाचूर कर दें। उन्होंने उत्तर दिया या मेरे परवरदिगार मैं आपसे इन लोगों की शिकायत करता हूँ। हे दया और करूणा के सागर आप तो गरीबों के और मेरे भी परवरदिगार हो। मैं आपके अलावा और किसके पास जाकर ऐसे लोगों की शिकायत करूँ। अगर आप मुझसे खफा न हों क्योंकि मेरे अंदर वैसी शक्ति ही नहीं है जैसी आपके अंदर है और उन्होंने तैफ के लोगों को क्षमा कर दिया। ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनसे उनकी क्षमाशीलता के बारे में मालूम होता है। 

एक दूसरे उदाहरण के अनुसार जब भी पैगम्बर मोहम्मद एक यहूदी स्त्री के घर के सामने से गुजरा करते थे तो वह उनके ऊपर कूड़ा करकट फेंक देती थी। एक दिन जब वे उसके घर के सामने से गुजर रहे थे लेकिन उस दिन उनके ऊपर उस स्त्री ने कूड़ा नहीं फेंका। वे बड़े हैरान हुये कि क्या बात है? जब उन्होंने इस बारे में पूछताछ शुरू की तो मालूम हुआ कि वह स्त्री तो बीमार है। पैगम्बर तुरंत उस स्त्री को देखने के लिये उसके घर गये। उनको अपने घर पर देख कर उस स्त्री को बहुत शर्मिंदगी का अनुभव हुआ। पैगम्बर मोहम्मद की दयालुता से वह बड़ी प्रभावित हुई। इसके बाद उसने इस्लाम धर्म कुबूल कर लिया।

मुसलमानों द्वारा लड़े गये पहले युद्ध को बदर का युद्ध कहा जाता है क्योंकि इस युद्ध को बदर के कुँओं के पास लड़ा गया था। इस युद्ध में बड़ा संख्या में उन लोगों पर जीत हासिल की गई जो मोहम्मद साहब के विरोध में थे। इस युद्ध में मुसलमान सेना ने अनेकों लोगों को कैद कर लिया। जब उन कैद लोगों के भाग्य का फैसला किया जा रहा था, उस समय अबू बक्र नाम के शख्स ने राय दी कि चूँकि मुसलमानों और मक्का के बाशिंदों की रगों में एक ही खून बह रहा था अतः मुसलमानों को मक्का के लोगों से कुछ रकम हासिल करके उनको छोड़ देना चाहिये। दूसरी ओर ओमर नाम के शख्स ने कहा कि इन कैदियों ने मुसलमानों पर अनेकों ज़ुल्म ढाये हैं और इन्हीं के कारण पैगम्बर मोहम्मद को देश निकाला दे दिया गया था। अतः उसने अपना फैसला सुनाया कि इन कैदियों को बर्बरता से मार डाला जाय।
अबू बक्र और ओमर की राय मानने वालों की संख्या बराबर थी। पैगम्बर साहब ने अबू बक्र का साथ दिया। उन्होंने आदेश दिया कि सभी कैदियों के साथ मानवता का व्यवहार किया जाना चाहिये। उन्होंने उन सभी कैदियों को रिहा कर दिया। उनका आदेश ऐसा होता था कि मुसलमानों ने कैदियों के प्राणों की रक्षा के लिये अपना खाना भी छोड़ दिया और खुद सूखे छुहारे खा कर जीवित रहे।

उनकी रिहाई के बदले में जो रकम रखी गई वह प्रत्येक कैदी की धन संपत्ति अनुसार निश्चित की गई थी। पैगम्बर साहब के चाचा अब्बास को सबसे ज्यादा रकम देनी पड़ी। जबकि कई लोगों को तो बिना कोई रकम लिये हुये ही छोड़ दिया गया। उनको छोड़ने से पहले एक शर्त रखी गई कि जो भी कैदी पढ़ना लिखना जानते हों वे दो अन्य अनपढ़ मुसलमानों को पढ़ना लिखना सिखायेंगे।


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