आखिर यह नाम दान / गुरू मन्त्र है क्या ?
क्यों दिया जाता है ? क्यों लेना चाहिए ?
कबतक प्रभावी है ?
*सबसे बड़ा सवाल* गुरू मन्त्र किस से लें
हम मे से बोहोत सारे लोग आज यह जानते हैं कि हमारे शरीर में 7 चक्र और 3 नाड़िया होती है .... कुछ एक कुण्डलिनि शक्ति के बारे मे भी जानते हैं ..... जो नहि जानते उनके लिए बता देते हैं
मानव शरीर में परमात्मा द्वारा स्थापित एक सुक्ष्म शरीर भी होता है जिसमे प्रमुख 3 नाड़ियां ईड़ा पिंगला व सुषुम्ना हैं
ईड़ा बायीं तरफ पिंगला दायीं तरफ व सुषुम्ना मध्य में स्थापित की गई (रीढ़ की हड्डी के बीच मे) अब ईस नाड़ी पर 7 चक्र स्थापित हैं क्रमश:
1. मूलाधार चक्र रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से मे
2. स्वाधिष्ठान चक्र कमर में
3. मणिपूर चक्र नाभी में
4. अनहत चक्र हृदय में
5. विशुद्धि चक्र कण्ठ में
6. अगन्य चक्र माथे में
7. सहस्त्रार चक्र सर के तालू भाग में
जैसा कि आपने जाना कि कौन कौन से चक्र व नाड़ियां हमारे शरीर में स्थापित हैं
*अब सवाल यह है कि यह काम क्या करते हैं*
छोटा सा उत्तर दूंगा कि अपनी जद मे आने वाले अंगों को सुचारू रूप से न केवल चलाते है बल्कि नुक्सान की भरपाई तक करते हैं और भी आध्यात्मिक गुण हैं वह कभी बाद में चर्चा करेंगे आज हम नामदान की बात करते हैं
तो आपने नाड़ी , चक्र जान लिए
कुण्डलिनि क्या है ?
कुण्डलिनि परमात्मा की वह शक्ति हेै जो गर्भ मे पल रहे 2 से 3 महीने के भ्रूण में तालू भाग से प्रवेश कर नाड़ियों व चक्रों की स्थापना कर के हृदय में श्री शिव स्वरूप आत्मा को स्थापित कर रीढ़ की हड्डी के सबसे नीचे त्रिकोणाकार अस्थि पर जाकर 3.5 कुण्डल मार कर बैठ जाती है या सो जाती है ईसके पास हमारे सभि जन्मों का लेखा जोखा सुरक्षित रहता है और उसी के मुताबिक हमे आगे के जन्म मिलते हैं
तो यह सोई हुई शक्ति एक वरदान है परमात्मा का यदि यह जाग जाए तो परमीत्मा से जीते जी सम्पर्क जोड़ देती है व न केवल कर्मों से मुक्ति मिल सकती है बल्कि असाध्य रोग समस्याएं ठीक होने लगती हैं
और भी बोहत फायदे होते हैं
यग खुद भी यहि चाहती है कि ईसे जगाया जाए और जिस तालू भाग से यह शरीर में प्रवेश हुई थी उसी दशम द्वार को भेद कर यह परमात्मा से एकाकार हो जाए
ईस क्रिया में कई सारे फायदे भी होते है व कई सारी समस्याएं भी आती है
जैसे कि चक्र की खराबी
हमारे जो चक्र हैें वह देवी देवताओं द्वारा संचालित हैं चक्र मे खराबी या किसी कारणवश जब देवता चक्र से चले जाते हैं तो चक्र बन्द हो जाता है जिसके कारण कुण्डलिनि उस चक्र से निचले स्तर पर रूक जाती है
*नाम दान* एक एसा व्यक्ति जो स्वयं आत्मसाक्षातकारी हो वह आपके चक्रों को देख कर/ महसूस कर के आपको उस चक्र से सम्बन्धित दोवता को प्रसन्न करने वाले शब्द / क्रिया या मन्त्र बता देता है
जिसे आम भाषा में गुरू जी से नाम दान या गुरू मन्त्र लेना कहा जाता है
ईस सब में वह मन्त्र देने वाला व्यक्ति एक सन्देशवाहक की भूमिका निभाता है कि आपको आपके चक्र के देवता का सानिध्य प्राप्त हो व आपकी कुण्डलिनि आप को भवसागर पार करा कर परमात्मा से जोड़ दे
(भवसागर भी हमारे शरीर के अन्दर ही होता है )
तो अब सवाल यह है कि नाम दान कब तक रहे अगर देवता आ गए और आप फिर भी मन्त्र पढ़ते रहे तो फिर तो वे नाराज हो कर चले जाएंगे कि यह तो बस बुलाने मे लगा है और ईसको कोई काम नहि
यह कैसे पता चले कि देवता आए कि नहि या मन्त्र उसी चक्र का दिया गया है जो खराब है
कौनसा चक्र खराब है
यह एक बड़ी उलझन का विषय है क्योंकि आजकल लोग पैसे के लिए कुछ भी कर जाते हैं
तो परख करना आना चाहिए
अब परख करना कैसे सीखें
आसान है
सहजयोग नाम की संस्था हर शहर में हर सप्ताह कम से कम एक *निषुल्क* कुण्डलिनि जागरण , ध्यान योग का कार्यक्रम चलाती है
किसी भी उम्र का महिला या पुरूष वहा जाकर सीख सकता है
वहा जाईये, सीखिये व परख कीजिए
*स्वयं के गुरू बनिए*
SahAj yoga meditation