Wednesday, 17 October 2018

*�श्री माताजी से प्रश्न-* *चैतन्य लहरियाँ आती कहाँ से हैं? आपसे, ब्रह्माण्ड से या वातावरण से?*


*�श्री माताजी से प्रश्न-*
*चैतन्य लहरियाँ आती कहाँ से हैं? आपसे, ब्रह्माण्ड से या वातावरण से?*

*श्री माताजी का उत्तर-* चैतन्य लहरियाँ हर तरफ से आती हैं, इन्हें प्रवाहित करने वाली शक्ति मैं हूँ। ठीक है, ये बात आपको स्वीकार है? यह जीवन-प्रदायिनी शक्ति है। ये आपको पूर्ण सन्तुलन प्रदान करती है, आपके शरीर को सुधारती है, आपकी मानसिकता को सुधारती है, भावनात्मक रूप से आपको सुधारती है, परमात्मा से आपको पूर्ण आध्यात्मिक एकरूपता प्रदान करती है। ये आपको पूर्णतः समन्वित करती है। जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है मुझे बिल्कुल भी पश्चाताप नहीं है।
मैं ये भी नहीं जानती पश्चाताप क्या होता है। मैं नहीं जानती कि प्रलोभन (Temptation) क्या होता है? इन चीज़ों को मैं इसलिए नहीं समझती क्योंकि मैं अपने आप से पूर्णतः एकरूप हूँ। एक उंगली जो मैं हिलाती हूँ, एक हाथ मैं जो हिलाती हूँ उसका भी कोई अर्थ होता है। बिना सोचे ये सब होता है परन्तु इसके पीछे बहुत बड़ा विचार छिपा होता है। मैं कहती हूँ, 'हाँ'। 'हाँ' का अर्थ ये है कि वृत्त की रचना हो चुकी है और ये वृत्त कार्य करता है। इसकी व्याख्या करना कठिन है क्योंकि मेरी तकनीक आपकी तकनीक से भिन्न है। अतः मैं अपने कार्यों की व्याख्या नहीं कर सकती। आपके अन्दर वो तकनीकी ज्ञान नहीं है। परन्तु बात यही है। जब मैं कहती हूँ 'हीं', 'हूँ', 'हाँ', 'हीं' ये सारे शब्द शक्तिशाली हैं। ये एक प्रकार की शक्ति का सृजन करते हैं, ऐसी शक्ति का सृजन करते हैं जो सारी नकारात्मकता, को सारे राक्षसों आदि को निगल जाती है और आप उन्हें बाहर भी खींच सकते हैं । अभी मैंने एक मटके के अन्दर अपने श्वास दिये हैं। ये अपने आप में पूर्ण प्रणव है। रात्रि को जब ये लोग सोये हुए होंगे तो ये प्रणव बाहर आ जायेगा और शनैः शनैः आपके अन्दर की बुराइयों को निकाल फेंकेगा और इन्हें बाँधकर अन्दर (मटके में) डाल देगा। आपने देखा होगा कि इस प्रकार से कितने ही पागल लोगों का इलाज हुआ है।
*प0पू0श्री माताजी, भारतीय विद्या भवन, मुंबई, 22.03.1977*

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