(पीटर कॉर्डन, इटरनली इंसपाइरिंग रिकलेक्शन्स ऑफ अवर होली मदर, वॉल्यूम सं0-4, पृ0सं0 71)
एक बार जब 1980 में श्रीमाताजी ऑस्ट्रेलिया आँईं तो मुझे देवी देवताओं के नामों के उच्चारण के क्रम में कुछ गलतियाँ लगीं। उनमें से एक फर्क था कि लोग हमेशा आज्ञा के मंत्र में श्री मैरी जीसस कहा करते थे। माँ से पूछने पर इसका उत्तर माँ ने हमें इस प्रकार से दिया।
श्रीमाताजी ने कहा कि मैं इसके बारे में आपको अभी बताती हूँ। जब हम श्रीशिव पार्वती कहते हैं तो उसमें श्रीशिव के अतिरिक्त और कोई नहीं होता है अतः श्री शिवजी का नाम पार्वती जी से पहले आता है। श्रीविष्णु जी ने समय-समय पर कई बार अवतार लिये। जब हम श्री लक्ष्मी नारायण का नाम लेते हैं तो पहले लक्ष्मी जी का नाम लेते हैं क्योंकि वे विवाहित दंपत्ति हैं। इसी प्रकार से जब हम श्रीसीता राम का नाम लेते हैं तो भी सीता जी का नाम पहले लिया जाता है। जब श्रीराधा कृष्ण का नाम लिया जाता है तो पहले राधा जी का नाम आता है क्योंकि वे भी विवाहित हैं परंतु जब हम श्रीजीसस मैरी का नाम लेते हैं तो हमेशा पहले श्रीजीसस का नाम लें क्योंकि वे माता एवं पुत्र हैं ..... विवाहित नहीं हैं। जब हम श्रीब्रह्मदेव सरस्वती का नाम लेते हैं तो पहले श्रीब्रह्मदेव का नाम आता है, सरस्वती जी का नहीं क्योंकि सरस्वती उनकी शक्ति हैं पत्नी नहीं। इसके बाद श्रीमाताजी ऑस्ट्रिया गईं तो सभी किताबों में इसी प्रकार से संशोधन कर दिया गया।
No comments:
Post a Comment