Tuesday, 13 March 2018

सहज धर्म क्या है,

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Sahaj yoga meditation
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मै चाहती हूं कि आप सहजयोग में गहन दिलचस्पी दिखाये और कुंडलिनी का ज्ञान सीखेे
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"..................दीप प्रज्वलित करने का यह अंतिम समय है । इसको होना है और ये होकर ही रहेगा । देखते हैं कि इस योग भूमि पर कितने लोग इस दीप प्रज्वलन को स्वीकार कर पाते हैं । परंतु मेरी बात को सिर्फ सुनकर ही आप इस बात को न मान लें बल्कि आपको इसे ह्दय से जानना है और अपने चैतन्य से जानना है । आप इसे अपनी कुंडलिनी के माध्यम से भी जान सकते हैं । कल मैंने आप सबसे अनुरोध किया था आज भी कर रही हूं कि ," सहज योग को समझने के लिये आपको अत्यधिक बुद्धिमान होने की आवश्यकता नहीं है ।"...आपको केवल एक ' श्रद्धावान ह्रदय ' की आवश्यकता है । यदि आपके पास यह है तो यह कार्यान्वित हो जायेगा । अब समय आ गया है जब कई फूल फल बन जायेंगे । यही वो समय है । मेरे प्रति इतना प्रेम प्रदर्शित करने के लिये मैं आपका बार बार धन्यवाद करती हूं । जब मैं अपने प्रेम के सागर का अनुभव करती हूं और ये प्रेम जब आपके ह्रदय तक पंहुचता है और आपसे होकर ये वापस मुझ तक पंहुचता है । यह पैराबोलिक गति है । जब मेरा यह प्रेम आप तक जाता है और प्रेम के रूप में ही वापस आता है, तो यह मुझे अत्यंत आनंदित करता है । यह अत्यंत प्रेमदायक अनुभव होता है, एक बिल्कुल भिन्न अनुभव जिसे हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते । मैं आप सबका इस प्रेम के लिये धन्यवाद करना चाहती हूं । ईश्वर आप सबको आशीर्वादित करें, आप और आपकी चेतना पर परमचैतन्य की वर्षा हो ।
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...................मैं भी बारंबार आपको आशीर्वाद देती हूं । मैं आशा करती हूं कि , "आप सभी सहजयोग में गहन दिलचस्पी दिखायेंगे, इसकी विधियों को सीखेंगे और कुंडलिनी के विषय में संपूर्ण ज्ञान हासिल करेंगे ।" ...यहां पर हमारे बीच कई लोग ऐसे है जो इसके विषय में जानते हैं और आप इस विषय पर उनसे बात भी कर सकते हैं, कार्यक्रमों में भी आप मेरे भाषणों को सुनकर भी इसके विषय में समझ सकते हैं । कृपया नम्र बनें । सबसे पहले इस ईश्वरीय ज्ञान को अपने अंदर सोखें । आपके य़ंत्र को इस योग्य बनायें कि यह किस प्रकार का ज्ञान है । कुछ चीजें इधर उधर से पढ़ लेने मात्र से आपको यह ज्ञान नहीं मिल सकता । अपने संकुचित ह्रदय और अहंकारपूर्ण विचारों पर न जायें, जिससे आप सभी का मजाक बनाते हैं । परमात्मा आप सभी को आशीर्वादित करें ।"

---- H.H.SHRI MATAJI --- सार्वजनिक प्रवचन भारत १९८७


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