Tuesday, 10 December 2019

श्री लक्ष्मी तत्त्व को प्राप्त करें, दिल्ली 15 मार्च 1984, श्री माता जी श्री निर्मला देवी

श्री लक्ष्मी तत्त्व को प्राप्त करें, दिल्ली 15 मार्च 1984, श्री माता जी श्री निर्मला देवी


                         

महालक्ष्मी तत्व
".................आदिशक्ति कि जो तीसरी शक्ति है , त्रिगुणात्मिका वो महालक्ष्मी कि शक्ति है।इसी शक्ति से हम धर्म को धारण करते है।महालक्ष्मी के सम्बन्ध मे हमे ये समझना होगा कि वे क्या करती है और उनकी सहायता क्या है। महालक्ष्मी वाहिका ( सुषुम्ना ) या महालक्ष्मी की शक्तियों ने हमारे अंदर आवश्यक संतुलन,आवश्यक मार्ग का सृजन किया है ताकि कुण्डलिनी उठ सके।बाएं और दायें अनुकंपी को संतुलित किया है और कुण्डलिनी के उत्थान के लिये वे हि खुला मार्ग बनाती है।यह प्रेम एवं करुणा का मार्ग है ,करुणा और प्रेम के माध्यम से वे ये मार्ग बनाती है क्योंकि वे जानती है कि यदि मार्ग खुला न होगा तो कुण्डलिनी न उठ सकेगी।अंततः व्यक्ति उस अवस्था तक पहुँच जाता है जहाँ जिज्ञासा का आरम्भ होता है और आप लोगों मे जब जिज्ञासा जागृत हुई तो आपका महालक्ष्मी तत्व जागृत हो गया एक अन्य कार्य जो ये महालक्ष्मी तत्व करता है वो ये है कि यह कुण्डलिनी शक्ति को भिन्न चक्रों तक जाने का मार्ग बताता है ताकि इन चक्रों के दोष दूर हो सके।ये अत्यंत लचीली शक्ति है जो भिन्न चक्रों मे कुण्डलिनी का पथप्रदर्शन करती है और समझती है कि किस चक्र को कुण्डलिनी कि सहायता कि आवश्यकता है।आपने अवश्य देखा होगा कि किसी भी बाधित चक्र पर जाकर ,उसे ठीक करने के लिये ये किस प्रकार धड़कती है।यह सारा कार्य इसलिए होत है क्योंकि वे करुणा एवं प्रेम से परिपूर्ण है और चाहती है की आप पूर्ण सत्य को प्राप्त करें।पूर्व कर्मों के बहुत से बन्धन एवं समस्याएं हमारे उत्थान मे कठिनाई उत्पन्न करते है।
..................षडरिपु हमारा अन्तरपरिवर्तन ( उत्थान ) असंभव कर देते है।परन्तु महालक्ष्मी तत्व के प्रज्वलित और जागृत हो जाने पर मानव मे अन्तरपरिवर्तन होता है और वह एक भिन्न तत्व का बन जाता है -- आत्मतत्व।प्रकृति के पाश से मुक्त होकर साधक परमेश्वरी लीला का साक्षी एवं अपना स्वामी ( गुरु ) बन जाता है।महालक्ष्मी शक्ति जागृत एवं स्थापित होने के पश्चात् व्यक्ति बात -बात पर परेशान नहि होता ,प्रेम एवं करुणा का आनंद उठाता है।साधक को श्री कृष्ण वर्णित ' स्थितप्रज्ञ ' स्थिति प्राप्त हो जाति है और उसमे 'सामूहिक चेतना ' का एक नया आयाम विकसित हो जाता है। बूँद समुद्र में मिलकर 'पुर्नसमुद्र ' - ' परमेश्वरी प्रेम कि शक्ति ' बन जाति है तथा बहुत से दीप प्रज्वलित करती है।"
---- H.H.SHRI MATAJI ----
महालक्ष्मी पुजा , १० नवम्बर १९९६

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