Thursday, 31 October 2019

आर्थराइटिस के लिए उपचार# एवं विभिन्न बीमारियों के विभिन्न उपचार सहज योग ध्यान विधि से




*आर्थराइटिस के लिए सहज उपचार*
-अधिकतर बायीं नाभि चक्र के कारण होता है
-बायीं नाभि की कैंडल ट्रीटमेंट करें एक से अधिक बार यदि ज़रूरत हो तो
- जलक्रिया करें
- प्रभावित स्थान व् चक्र को विब्रशन्स दें
- केरोसिन व् अन्य किसी भी तैल(जैसे सरसों,तिल आदि) को बराबर मात्रा में मिलाकर कांच की शीशी में रख लें व् श्रीमाताजी के सामने बोतल को रखकर चैतनयित करके धन्वंतरि साक्षात् व् स्वस्था साक्षात् का मंत्र लेकर श्रीमाताजी का आव्हान करें कि श्रीमाताजी आप ही डॉक्टरों की डॉक्टर हैं कृपया मेरे समस्त रोगों का नाश आप ही कीजिये,मैं आपकी शरणागत हूँ इस चैतनयित तैल को जहाँ दर्द हो लगाकर मालिश करें व् गणेश अथर्वशीर्ष बोलें
-6 दिन तक कम से कम *रोज़ 2 निम्बू *गर्म पानी में निचोड़ कर रोज़ सुबह दोपहर व् रात को खाने के बाद अवश्य लें। *विटामिन-c* की कमी से जॉइंट पेन होता है। यदि ज्यादा खट्टा लगे तो शहद मिला कर पियें।
-ठन्डे पानी से नहाने की आदत डालें ,गर्म पानी से न नहाएं उससे *मस्कुलर अट्रोफी* होजाती है मांसपेशियां कड़क होजाती हैं ,जिससे चल नहीं पाते हैं
-रोज़ थोड़ी एक्सरसाइज *हमेशा* करें
-घुटने पर घेरू लगा सकते हैं वह अच्छा होता है
-बहते पानी में संभव हो तो नहाएं
-जमीन के नीचे पैदा हुए पदार्थ न खाएं
- घुटनों के दर्द के लिए श्री विंध्यवासिनी साक्षात् का मंत्र लें
- अन्य हड्डियों के लिए श्री पार्वती साक्षात् का
- संधि स्थानों के लिए श्री अभेद्या साक्षात् का मंत्र लें
-पीठ में निचली कमर के लिए श्री भगवती साक्षात् का
-रीढ़ की हड्डी केलिए श्री धनुर्धरी साक्षात् का मंत्र लें
-जिस भी स्थान विशेष में बीमारी हो वहाँ उनके अधिष्ठाता देवी देवता का मंत्र लें
*नोट- केरोसिन के तेल की मालिश सबसे बढ़िया उपाय है घेरू के मुकाबले*
*दुनिया की ऐसी कोई बीमारी नहीं जो श्रीमाताजी की करूण कृपा में ठीक न हो सके, अपना ध्यान व् शुद्धिकरण नित्य करें ,सब कल्याणमय होगा जय श्रीमाताजी *
*सन्दर्भ - मेडिकल एनलैटण्ड, मेडिकल a-z, श्री देवी कवच, प्रेस वार्ता कलकत्ता ,भारत 14/10/1986*

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Wednesday, 16 October 2019

देवी देवताओं के नाम का उच्चारण किस क्रम में करें .... (पीटर कॉर्डन, इटरनली इंसपाइरिंग रिकलेक्शन्स ऑफ अवर होली मदर, वॉल्यूम सं0-4, पृ0सं0 71)

देवी देवताओं के नाम का उच्चारण किस क्रम में करें ....
(पीटर कॉर्डन, इटरनली इंसपाइरिंग रिकलेक्शन्स ऑफ अवर होली मदर, वॉल्यूम सं0-4, पृ0सं0 71)

एक बार जब 1980 में श्रीमाताजी ऑस्ट्रेलिया आँईं तो मुझे देवी देवताओं के नामों के उच्चारण के क्रम में कुछ गलतियाँ लगीं। उनमें से एक फर्क था कि लोग हमेशा आज्ञा के मंत्र में श्री मैरी जीसस कहा करते थे। माँ से पूछने पर इसका उत्तर माँ ने हमें इस प्रकार से दिया।

श्रीमाताजी ने कहा कि मैं इसके बारे में आपको अभी बताती हूँ। जब हम श्रीशिव पार्वती कहते हैं तो उसमें श्रीशिव के अतिरिक्त और कोई नहीं होता है अतः श्री शिवजी का नाम पार्वती जी से पहले आता है। श्रीविष्णु जी ने समय-समय पर कई बार अवतार लिये। जब हम श्री लक्ष्मी नारायण का नाम लेते हैं तो पहले लक्ष्मी जी का नाम लेते हैं क्योंकि वे विवाहित दंपत्ति हैं। इसी प्रकार से जब हम श्रीसीता राम का नाम लेते हैं तो भी सीता जी का नाम पहले लिया जाता है। जब श्रीराधा कृष्ण का नाम लिया जाता है तो पहले राधा जी का नाम आता है क्योंकि वे भी विवाहित हैं परंतु जब हम श्रीजीसस मैरी का नाम लेते हैं तो हमेशा पहले श्रीजीसस का नाम लें क्योंकि वे माता एवं पुत्र हैं ..... विवाहित नहीं हैं। जब हम श्रीब्रह्मदेव सरस्वती का नाम लेते हैं तो पहले श्रीब्रह्मदेव का नाम आता है, सरस्वती जी का नहीं क्योंकि सरस्वती उनकी शक्ति हैं पत्नी नहीं। इसके बाद श्रीमाताजी ऑस्ट्रिया गईं तो सभी किताबों में इसी प्रकार से संशोधन कर दिया गया।

Wednesday, 9 October 2019

मन आपको मूर्ख बनाता है, उसे इसकी इजाजत न दें।





मन आपको मूर्ख बनाता है, उसे इसकी इजाजत न दें।

बहुत ज्यादा सोच विचार करना अहंकार की निशानी है। जो लोग बहुत ज्यादा सोचते हैं, वे समाधान को प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि वे केवल बातचीत कर रहे हैं, बहस कर रहे हैं और सोच रहे हैं। उनके पास कोई समाधान नहीं है। सहजयोगियों को आत्मनिरीक्षण करना पड़ेगा, अपने अंदर अपने आप से पूछें कि मैं क्या सोच रहा हूँ? क्यों सोच रहा हूँ? मुझे सोचने की क्या जरूरत है? और आप निर्विचार हो जाएंगे। मन आपको मूर्ख बनाता है, उसे इसकी इजाजत न दें।
परमपूज्य श्री माताजी निर्मलादेवी
०२ मे १९८५
आपका दिन मंगलमय हो

प्रश्न-उत्तर


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Friday, 4 October 2019

एंटीबॉयोटिक दवाऐं खतरनाक है#मध्य हृदय को ठीक करने के लिये किसी प्रकार की दवा की आवश्यकता नहीं है।

अनाहत चक्र


                               
मध्य हृदय 

         


मध्य हृदय को ठीक करने के लिये किसी प्रकार की दवा की आवश्यकता नहीं है।


एंटीबॉयोटिक दवाऐं खतरनाक है।


        जब हमारा ये केन्द्र अर्थात हमारा मध्य हृदय खराब हो जाता है तो सबसे पहले आपके शरीर की एन्टीबॉडीज कम हो जाती हैं। ऐसी बहुत सारी दवायें हैं, जिनसे हमारे शरीर की एंटीबॉडीज कम होने लगती हैं, लेकिन फिर भी लोग इन दवाओं को लेते रहते हैं, क्योंकि इनको लेते रहने से उनको कुछ समय के लिये अपनी बीमारी में थोड़ा आराम मिलता है। लेकिन इन दवाओं को लेते रहने से आप अन्य रोगों के शिकार हो जाते हैं, क्योंकि आपके शऱीर में एंटाबॉडीज कम हो जाती हैं और आप अन्य रोगों से नहीं लड़ सकते और आपकी रोग प्रतिरोधक शक्ति क्षीण होने लगती है। ऐसी दवाओं को लेते समय ये भूल जाते हैं कि हम लोग संपूर्ण व्यक्तित्व हैं न कि महज भौतिक शरीर हैं। हमारा भावनात्मक और मानसिक अस्तित्व तो है ही लेकिन इन सबसे ऊपर हमारा आध्यात्मिक अस्तित्व भी है। जब हम इस पहलू को भूल जाते हैं, तो उस समय हम केवल अपने भौतिक शऱीर की चिंता करते रहते हैं और जब हमारा भौतिक शरीर रोगग्रस्त हो जाता है, तो उसको ठीक करने के लिये हम इस पृथ्वी पर उपलब्ध हर इलाज को करने की कोशिश करते हैं। परंतु हमें ये मालूम नहीं होता कि *इन उपचारों को करने से हमारा भावनात्मक पक्ष खराब हो जाता है, और जब हमारा भावनात्मक पक्ष कमजोर हो जाता है तो यह काफी खतरनाक हो सकता है।* जिन दवाओं को हम ले रहे होते हैं वे हमारे शरीर की एंटीबॉडीज को कम कर देती हैं और अंततः हम पागलपन की कगार तक पहुँच जाते हैं।. *इन दवाओं को लेते रहने से पहले तो आपको चक्कर आने लगते हैं .... और अत्यधिक नींद आती है। बहुत ज्यादा सोने से और ढेरों दवायें लेने से आप पागलपन का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि आप अवचेतन में धकेल दिये जाते हैं, जहाँ आपके ऊपर बाँई ओर के आक्रमण होने लगते हैं और फिर आप पगला जाते हैं।*
         अतः इन दवाओं को सेवन बहुत ज्यादा खतरनाक होता है।चिकित्सक लोग मानव की पूरी प्रकृति जाने बिना केवल इसके एक ही भाग अर्थात भौतिक (शारीरिक) पक्ष का ही उपचार करते रहते हैं। सहजयोग में हम, जैसा कि उन्होंने आपको अभी बताया, कि मैं बिल्कुल भी कोई दवा नहीं लेती हूँ। मैं...... जैसे कबीर दासजी ने भी कहा है कि मैं तो कोई भी दवा नहीं लेता हूँ। *जो परमब्रह्म परमेश्वर हैं, वही मेरे वैद्य हैं । वे ही मेरा उपचार करते हैं।*  ये सच भी है। अब वह समय आ गया है कि जैसा कबीर  और नानकदेव जी ने कहा है-- शंकराचार्य और ईसामसीह ने कहा है कि *मध्य हृदय को ठीक करने के लिये किसी प्रकार की दवा की आवश्यकता नहीं है।*

*---परमपूज्य श्रीमाताजी श्रीनिर्मला देवी ।* सार्वजनिक कार्यक्रम, 9 फरवरी 1981, नई दिल्ली-भारत।

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श्री माँ की ममता को feelकर ने के लिए video को पूरा देखें कुण्डलिनी जागरित अवस्था में आ जाएगी

कैसे प्राप्त करें आत्म साक्षात्कार? कुण्डलिनी जागरण और सहजयोग ध्यान विधि |

इसका उल्लेख गुरु नानक, शंकराचार्य, कबीर और संत ज्ञानेश्वर के प्रवचनों में मिलता है। यह किसी की मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मि...