निर्णय कैसे लेना चाहिए/ मैं तुम्हारे पुण्य गिन रही हूँ I
👇 please watch this video👇
👇 please watch this video👇
1975-0120 Hindi, Mumbai
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
........... आपसे इतना कहना है कि यह जिंदगी आपकी अपनी चीज है और आपको इसका पूरा उपयोग करना चाहिए, क्योंकि यह जिंदगी बहुत महत्वपूर्ण है।आज तक परमात्मा ने अनेक लोगों को संसार में भेजा है, उस कार्य की ही फलश्रुती हो रही है।आज उसी कार्य के आशिर्वादस्वरूप आप लोगों ने 'सहजयोग' पाया है।
प.पू.श्री माताजी निर्मला देवी
मुम्बई 2-4-85
----------------पब्लिक प्रोग्राम में एक सहजयोगी का श्री माताजी से प्रश्न - हमने गीता में भी पढ़ा है और रामायण में भी पढ़ा है की जो जैसा कर्म करेगा उसी के अनुसार उसे फल मिलेगा,यंहा हमजैसे पापी भी होंगे और हमें इस तरह आप (श्री माताजी) सब को बुलाकर पार कराये जा रही है,इसका क्या मतलब है ?
(श्री माताजी कुछ देर हँसते है )
श्री माताजी द्वारा उत्तर - मैं तो कभी सोचती ही नहीं थी की तुम लोगों ने क्या पाप किया क्या न किया, जो माँ अपने बच्चों का पाप ना उठा सकती वो माँ क्या हुई बेटा? कोनसा ऐसा पाप है जो तुम कर सकते हो जो तुम्हारा पाप मैं ना उठा सकू ? ऐसी बात भी कभी न सोचना की तुमने कोई पाप किया हैI कौन पाप कर सकता है, देखें तो किसकी मजाल है ,कोनसा पाप किया है , जो सारे पाप को पी सकती है वही तुम्हारी माँ है यंहा बैठी हुई ,अच्छा......... यह बात सही है लोगों को लगता होगा I अपने अन्दर एक ऐसा चक्र है उसकी जागृती से मनुष्य के सब पाप धुल जाते है वही आज्ञा चक्र है उसकी जागृती हो जाये तो सबके पाप धुल सकते है ,अब पाप गिनने का समय नहीं है पुण्य गिनने का समय है , मैं तुम्हारे पुण्य गिन रही हूँ I
प.पु.श्री माताजी निर्मला देवी
अब प्रश्न है
*निर्विचार चेतना आप कैसे प्राप्त करें ?*
........बहुत से लोग कहते हैं, 'माताजी, निर्विचार हो ही नहीं सकते।' *आप निर्विचार नहीं हो सकते, क्योंकि जब भी आप किसी चीज़ को देखते हैं, आप प्रतिक्रिया करना चाहते हैं।* शनैः शनैः आप प्रतिक्रिया बन्द कर दें , अन्तर्मनन करें, स्वयं की प्रतिक्रियाओं को देखें तथा अपने मस्तिष्क को सुधारने के लिए कहें तो यह कार्य हो सकता है ।
*प पू श्री माताजी,16-09-2000, कबेला*
अर्धबिंदू, बिंदू, वलय और प्रदक्षिणा- ऐसे चार चक्र है। जबकी आपका सहस्रार खुलं गया, उसके उपर भी इन चार चक्रो में आपको जाना है। इन चार चक्रो के बाद आप कह सकते है कि हम लोग सहजयोगी है।
प.पु.श्री माताजी ५/५/१९८३
No comments:
Post a Comment